मसीह आस्था को लेकर क्यों है कट्टरपंथियों को आपत्ति?
By Nempal Singh (Advocate)
Date: 15/09/2022
मसीह आस्था को लेकर क्यों है कट्टरपंथियों को आपत्ति?
मसीह आस्था को लेकर इन दिनों में देश भर से काफी घटनाएं सामने आ रही हैं हाल ही में पंजाब में भी कुछ घटनाएं घटी हैं जिसमें कथित तौर पर कुछ कट्टर पंथी सिख समुदाय के लोगों के द्वारा दिनांक 28/08/2022 को डडुवाना गांव जिला अमृतसर (पंजाब) में मसीह प्रार्थना सभा में तोड़ फोड़ व् मार पीट की गयी और काफी नुकसान पहुँचाया गया वहां के पासबान सुखविंदर राजा के कथन के अनुसार उस समय की स्थिति काफी गंभीर एवं भयानक थी जब प्रार्थना सभा पर कट्टरपंथियों के द्वारा हमला किया गया। उनके कथन के अनुसार वहां तक़रीबन 400 से 500 लोगों के द्वारा हमला किया गया था। हालाँकि इस मामले में पुलिस द्वारा दोषियों के खिलाफ एक ऍफ़o आईo आरo भी दर्ज की गयी थी। उसके बाद कथित तौर पर दिनांक 30/08/2022 को गांव पट्टी जिला तरन तारन (पंजाब) में तक़रीबन रात्रि 12 बजे के आस पास कुछ मसीह आस्था विरोधी लोगों के द्वारा कैथोलिक चर्च में घुस कर प्रभु यीशु व् माता मरियम की मूर्ति को खंडित करके मूर्ति के सरों को कटटरपंथियों के द्वारा अपने साथ लेकर जाया गया और चर्च फादर की कार को भी जला दिया गया। पेरिश प्रीस्ट (फादर थॉमस) के अनुसार वह रात को सोए हुए थे और तभी लगभग 12 बजे के आस पास चार कट्टरपंथी चर्च की दिवार कूद कर अंदर आ गए और वहां मौजूद गार्ड को बंदी बना लिया और घटना को अंजाम दिया हलाकि इस मामले में भी फौरी तौर पर पुलिस द्वारा अज्ञात लोगों के खिलाफ ऍफ़o आईo आरo दर्ज कर ली गयी थी और चर्च की सुरक्षा बढ़ा दी गयी थी। (अधिक जानकारी के लिए इस वीडियो रिपोर्ट को देखें) अब एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिरकार कट्टरपंथियों के द्वारा ऐसा क्यों किया गया ? इस सवाल का जवाब शायद बेहतर तरीके से उन्ही के द्वारा बताया जा सकता है जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया लेकिन यदि कानून के नजरिये से देखा जाए तो इस प्रकार की घटनाओं को एक शर्मनाक घटना ही करार दिया जा सकता है।
हालाँकि इस बात पर गौर करना बेहद जरुरी है कि इस प्रकार की घटनाओं के पीछे किस प्रकार की मानसिकता काम करती है और क्या इस प्रकार की मानसिकता और भी बढ़ती जा रहीं है? कथित तौर पर जिस प्रकार से धार्मिक आक्रोश के कारण भारत देश के विभिन्न राज्यों में घटनाएँ बढ़ती जा रही है उससे यह संकेत तो मिलता है कि धार्मिक कट्टरवाद किस हद तक इस देश की एकता और अखंडता के लिए घातक बनता जा रहा है। मसीह समुदाय जो कि पूरे विश्व में शांति सन्देश के लिए जाना जाता है और मसीह समुदाय के लोगों का संवैधानिक अधिकार भी वही अधिकार है जो सभी समुदाय के लोगो का इस देश में है। कट्टरवाद के परिपेक्ष्य में यदि बात की जाए तो मसीह आस्था के खिलाफ पनप रही कटटरवाद की भावना को रोका जाना बहुत अधिक आवश्यक है।
मसीह प्रार्थना सभाओं व् मसीह आस्था का क़ानूनी मूल्यांकन :
मसीह प्रार्थना सभाओं व् आस्था के विषय में यदि बात की जाए तो यह कहना उचित होगा कि यह एक संवैधानिक अधिकार है और किसी भी रूप में इस अधिकार को बाधित नहीं किया जा सकता यदि हम मसीह आस्था या मसीह प्रार्थना सभाओं के क़ानूनी मूल्यांकन के विषय में बात करें तो उदाहरण के तौर पर यदि किसी एक ओर से किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा किसी बात को एक विशेष स्थान से किसी एक या दो या इससे अधिक विषयों के सन्दर्भ में विस्तार पूर्वक बताया जा रहा है और यदि उसे सुनने के लिए दूसरी ओर से कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह अपने आप चल कर उस बताने वाले व्यक्ति के पास आता है और उस बात में जो विस्तार से बताई जा रही है सहजता के साथ अपनी सहमती जताता है तो वह बात दोनों पक्षों के बीच में एक सहज सहमति ही कही जा सकती है। वहीँ यदि हम दूसरे नजरिए से बात करें कि इसी उदाहरण में यदि दूसरा पक्ष पहले वाले पक्ष की कही जा रही बातों से यदि सहमत नहीं है तो वह उस स्थान को स्वेच्छा से छोड़ कर जा सकता है अब चाहे वह एक मसीह प्रार्थना सभा ही क्यों ना हो। तो सामान्य रूप से यदि तकनिकी तौर पर देखा जाए तो प्रार्थना सभा के सन्दर्भ में इस प्रकार का सामूहिक जमावड़ा संवैधानिक व् कानून के नजरिए से किसी भी प्रकार से असंवैधानिक व् गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता है। (अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें)
कथित तौर पर मसीह समुदाय के अधिकतर लोग इस बात को जानते हैं कि उनकी आस्था पर कभी भी और किसी भी कट्टरपंथी के द्वारा सवाल उठाए जा सकते हैं जो कि ठीक नहीं हैं, सामान्य रूप में यदि देखा जाए तो प्रार्थना सभाओं में आने वाले लोग इस देश के आम नागरिक हैं और अपनी आस्था के आधार पर ही अपनी आज़ाद मर्जी से प्रार्थना सभा में शामिल होते हैं। यहाँ तक भी देखा जा सकता है कि प्रार्थना सभा में शामिल होने वाले लोग प्रार्थना सभाओं तक सिर्फ आते ही नहीं हैं बल्कि प्रार्थना सभा में हो रही प्रार्थना व् आराधना में सहजता से शामिल भी होते हैं और प्रचार से सहमत भी होते हैं। अब यदि कानून के नजरिए से देखा जाए तो इस स्वतंत्र भारत देश में किसी भी नागरिक को आस्था के आधार पर किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा या फिर संगठन के द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता। व्यवहारिक रूप में भी यह युक्ति संगत नहीं लगता कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को अपनी आस्था बदलने के लिए कहे और वह बिना सोचे समझे अपनी आस्था को बदल ले। यह तभी संभव है जबतक कि सुनने वाला व्यक्ति स्वयं अपनी आस्था को बदलना नहीं चाहेगा। जैसा कि ऊपर एक उदहारण के माध्यम से बताया गया है कि यदि एक विशेष स्थान पर एक व्यक्ति के द्वारा प्रार्थना की जा रही है और लोगो या लोगों का समूह वहां पर अपनी मर्जी से आता है और प्रार्थना सभा में शामिल होता है और उस प्रार्थना सभा में बताई जा रही बातों में अपनी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में सहमति प्रदर्शित करता है तो उस प्रक्रिया को किसी भी सूरत में गैरकानूनी या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। यहां तक कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो इस तरह की प्रार्थना सभाओं के लिए कोई निश्चित सीमा निर्धारित करता हो या यह कहता हो कि इस प्रकार की प्रार्थना सभाओं के लिए एक विशेष अनुमति की आवश्यकता है। अनुमति की बात प्रशासन के द्वारा कहे जाने का तर्कसंगत एक ही कारण कानूनन रूप में माना जा सकता है और वह कट्टरपंथियों के द्वारा लोक व्यवस्था को बिगाड़ने की स्थिति है या उस प्रकार की सम्भावना है क्योंकि लोक व्यवस्था या कानून व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी पुलिस पर है और किसी भी तरीके से यदि लोकव्यस्था को बिगड़ता देखा जाता है तो पुलिस द्वारा अनुमति की बात मसीह समुदाय को कही जाती है और इस देश का ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके अंतर्गत किसी भी धार्मिक समागम के लिए आस्था के आधार पर अनुमति लेना अनिवार्य हो और यहाँ तक कि प्रार्थना करने के लिए धार्मिक आधार पर अनुमति देने का अधिकार किसी भी प्रशासकीय अधिकारी को नहीं है। सिर्फ लोक व्यवस्था के दृष्टिकोण से ही प्रशासकीय अधिकारी के द्वारा अनुमति दी जा सकती है ना कि धार्मिक आस्था के आधार पर। हालांकि अब यह सवाल भी उठता है कि जो इस देश के काफी राज्यों में एंटी कन्वर्शन लॉ को लागू किया गया है और उस कानून के अंतर्गत प्रशासकीय अधिकारी से धर्मांतरण से पहले अनुमति का प्रावधान दिया गया है जो कि धार्मिक आस्था पर आधारित है तो ऐसा कानून लागू किए जाने का उद्देश्य क्या था? जाहिर तौर पर ऐसे कानून का उद्देश्य गैर क़ानूनी धर्मांतरण को रोकना है लेकिन यदि किसी व्यक्ति की धार्मिक आस्था मसीह यीशु में है और वह प्रार्थना सभा में शामिल होता है और वह उस प्रार्थना सभा में अपने लिए प्रार्थना किए जाने के लिए स्वयं इच्छा जाहिर करता है तो उस प्रक्रिया को कानूनन रूप में धर्मांतरण की प्रक्रिया बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता, इसे सिर्फ आस्था का विषय माना जा सकता है ना कि कानून का। इस बात को भी समझना जरुरी है कि आस्था होना एक अलग विषय है और किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा अपना धर्मांतरण किया जाना एक अलग विषय अथवा प्रक्रिया है जिसे कट्टरपंथियों के द्वारा घुला मिला कर प्रशासन के सामने प्रस्तुत किया जाता है और अलग अलग तरह के आरोप लगा कर मसीह पासबानो के साथ कथित तौर पर मार पीट की जाती है, तोड़ फोड़ की जाती है और कथित तौर पर धर्मांतरण का झूठा आरोप लगा कर मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है और पुलिस को मजबूर किया जाता है कि वह मसीह समुदाय के लोगों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही करे और पुलिस कथित तौर पर काफी मामलों में कानून व्यवस्था की दोहाई देकर मसीह लोगों के खिलाफ कार्यवाही करती है और अधिकतर मामलों में कट्टरपंथियों के द्वारा गैरकानूनी कार्य करने के बावजूद भी कथित तौर पर वह छूट जाते हैं और कथित तौर पर इसके पीछे काफी अंदरूनी शक्तियों का हाथ होने से नाकारा नहीं जा सकता है। (अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें)
मैंने अपने काफी लेखों में इस बात को स्पष्ट रूप में बताया है कि किसी भी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का हनन करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। मैने अपने पिछले लेखों के माध्यम से संवैधानिक मूल्यों के विषय में बहुत विस्तार से बताया है। अनुच्छेद 25 जहाँ हमें धार्मिक स्वंत्रता देता है तो दूसरी तरफ लोक व्यव्यस्था, सदाचार व् लोक स्वास्थ्य के विषय में भी बताता है। यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि मसीह समुदाय एक शांतिप्रिय समुदाय है और बाइबिल के अनुसार जीवन जीने, एक दूसरे से प्रेम व् गुनहगारों को माफ़ कर देने की पद्दति पर आधारित है। शायद इसी बात का कट्टरपंथियों के द्वारा फ़ायदा उठाया जाता है। कानून के नजरिए से कोई भी पासबान या कोई भी विश्वासी एक मसीह होने के नजरिए से अनुच्छेद 25 के अंतर्गत अपनी आस्था के आधार पर लोक व्यवस्था, सदाचार व् लोक स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए अपने अन्तःकरण के आधार पर ईसाई धर्म को मानने, उस धर्म के अनुसार आचरण करने व् अपनी उस मसीह आस्था का प्रचार व् प्रसार करने के लिए स्वतंत्र है तो फिर यदि वह मसीह प्रचार या संगती अथवा प्रार्थना सभा का आयोजन एक गृह कलीसिया के रूप में करता है, वह एक चर्च के रूप में करता है या फिर किराए पर लिए गए मकान में या हॉल में करता है तो किसी भी रूप में उस प्रार्थना सभा को गैर क़ानूनी या फिर असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। कथित तौर पर कट्टरपंथियों के द्वारा चर्च में या फिर प्रार्थना सभा में तोड़ फोड़ व् मार पीट की घटनाएं अपने आपमें निंदनीय व् कट्टरपंथियों की संकीर्ण मानसिकता का प्रमाण है। यह जाहिर तौर पर उस कहावत की और संकेत करती है जो हम काफी समय से सुनते व कहते आए हैं (खसयानी बिल्ली खम्बा नोचे) यह बताना भी आवश्यक है कि खुल कर सुसमाचार का प्रचार बाइबिल के वचनों के आधार पर करना किसी भी रूप में गैर क़ानूनी या कोई अपराध नहीं है। यह भी बताना अत्यंतक आवश्यक है कि मसीह समुदाय को कट्टरपंथियों की संकीर्ण मानसिकता को ध्यान में रखते हुए सजगता से कानून का सहारा लेना चाहिए और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए यह अत्यंत आवश्यक है। यह भी बता देना आवश्यक है कि गृह कलीसिया, अपने घर में की जा रही निजी प्रार्थना, शादी व् जन्मदिन समारोह में प्रार्थना का आयोजन करना मसीह लोगों का संवैधानिक अधिकार है और उस अधिकार को किसी भी व्यक्ति या संस्था या फिर सरकार के द्वारा छिना नहीं जा सकता। अंत में यह कहना उचित होगा कि मसीह आस्था, विश्वास व् धर्म, बाइबिल से प्रचार, गृह कलीसिया, शादी व् जन्मदिन या फिर आमतौर पर मसीह या किसी भी धर्म के व्यक्ति द्वारा दिए गए आमंत्रण पर मसीह पासबान या विश्वासी के द्वारा की जाने वाली प्रार्थना सभा का आयोजन किसी भी रूप में गैर क़ानूनी या असंवैधानिक नहीं है बल्कि पूर्ण रूप से कानूनन व संवैधानिक है। (अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें)
नोट : इस लेख का उद्देश्य किसी की भी धार्मिक आस्था को आहत करना या ठेस पहुँचाना नहीं है। यह सिर्फ कथित तौर पर कुछ घटनाओं के सन्दर्भ में क़ानूनी विश्लेषण है और मेरे द्वारा यह कोशिश की गयी है कि हर विषय पर क़ानूनी मंथन व् उन घटनाओं का घटनात्मक विश्लेषण समय के अनुसार किया जाए।
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