जोशुआ प्रोजेक्ट (ईसाइयत की नज़र से)

By Nempal Singh (Advocate)

Date: 08/09/2024


जोशुआ प्रोजेक्ट की सच्चाई : 



    हाल ही में एक रिपोर्ट सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आई। जिसमें जोशुआ प्रोजेक्ट के विषय में बताया गया और यह कहा गया कि भारत में जोशुआ प्रोजेक्ट के माध्यम से ईसाईकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है और यह भी दावा किया गया कि भारत में जोशुआ प्रोजेक्ट के माध्यम से जो ईसाईकरण किया जा रहा है वह गैरकानूनी तरीके से किया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि जो कुछ भी कहा गया है उसमें कितनी सच्चाई है ? 

    जोशुआ प्रोजेक्ट के अबाउट सेक्शन को देखने पर यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि जोशुआ प्रोजेक्ट मूल रूप से गैरकानूनी तरीके से नहीं बल्कि बाइबिल के सिद्धांत पर सुसमाचार के मिशन के विषय में जानकारी देता है। जोशुआ प्रोजेक्ट बताता है कि कैसे और किस तरह से बाइबिल का सुसमाचार विश्वभर में प्रसारित किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें  


जोशुआ प्रोजेक्ट का क्यों किया जा रहा है विरोध ?


    कथित तौर पर ईसाई धर्म से सम्बंधित प्रचारकों को जोशुआ प्रोजेक्ट का हिस्सा बता कर उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है। जोशुआ प्रोजेक्ट पर आई रिपोर्ट के बाद से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश व भारत देश के अन्य राज्यों में पुलिस द्वारा जोशुआ प्रोजेक्ट से सम्बंधित लोगों को गिरफ्तार करने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाए जाने का दावा किया जा रहा है। (स्त्रोतों द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार) असल में जोशुआ प्रोजेक्ट का सम्बन्ध पूर्ण रूप से सुसमाचार से सम्बन्ध रखता है और वो भी क़ानूनी तरीके से। जोशुआ प्रोजेक्ट में किसी भी किस्म से गैर क़ानूनी तरीके को प्रोत्साहित नहीं किया गया और ना ही सुसमाचार के लिए किसी भी गैरकानूनी तरीके को सुझाया गया है। जोशुआ प्रोजेक्ट के विषय में जो कुछ जोशुआ प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर दिया गया है वह सभी भारत के संविधान के अनुरूप कानून संगत है। जोशुआ प्रोजेक्ट का ध्यान से अवलोकन करने पर यह एक ऐसे मिशन के रूप में दिखाई देता है जो कि बाइबिल के वचनों पर आधारित है। यह सपष्ट रूप से कहा जा सकता है जोशुआ प्रोजेक्ट गैर क़ानूनी तरीके से भारत में धर्मांतरण को किसी भी रूप में प्रोत्साहित नहीं करता है। 


dominus law associates


कानून की नज़र से : 


    कानून की नज़र से यदि जोशुआ प्रोजेक्ट के विषय में देखा जाए तो इस प्रोजेक्ट को किसी भी किस्म से गैरकानूनी धर्मांतरण की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता क्योंकि यह प्रोजेक्ट पूर्ण रूप से बाइबिल के सिद्धांत के अनुरूप विश्वभर में सुसमाचार की बात करता है और भारत के कानून के अनुसार यदि हम अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान की बात करें तो यह भारत में रहने वाले उसके नागरिकों का मौलिक अधिकार है जिसे हम धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में जानते हैं। अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान भारतीय नागरिकों को तीन शर्तों पर लोक व्यवस्था, नैतिकता व स्वास्थ्य का धयान रखते हुए अन्तःकरण की स्वतंत्रता देता है और धर्म में आस्था के अनुरूप आचरण व उस धर्म अथवा आस्था का प्रचार व प्रसार करने की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। मसलन  यदि किसी भी भारतीय नागरिक को बाइबिल से जो कि एक मान्यता प्राप्त धर्म ग्रन्थ है से सुसमाचार सुनाया जाता है और वह व्यक्ति जिसे सुसमाचार सुनाया गया है अपनी आस्था अथवा विश्वास बाइबिल के वचनों पर लाता है और यीशु मसीह को अपने ईष्ट के रूप में ग्रहण करता है तो उस स्थिति को गैरकानूनी धर्मांतरण किसी भी सूरत में नहीं कहा जा सकता है। 


जोशुआ प्रोजेक्ट (दलित एवं आदिवासी) 



यदि अब अगर हम दलित एवं आदिवासी लोगों की बात करें तो अमूमन इस देश में यह बात कही जाती है कि असहाय, गरीब व् अशिक्षित दलित एवं आदिवाली लोगों को गैरकानूनी धर्मांतरण का निशाना बनाया जा रहा है। यदि इस वक्तव्य पर गौर किया जाए तो यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि एक दलित अथवा आदिवासी गरीब हो सकता है, असहाय हो सकता है और साथ ही साथ अशिक्षित भी हो सकता है लेकिन प्रलोभन अथवा लालच के वश में अपने धर्म को त्याग देने वाला असंवेदनशील व्यक्ति कभी नहीं हो सकता।  जबकि एक दलित एवं आदिवासी व्यक्ति को अधिक संवेदनशील एवं विवेक से मजबूत कहा जा सकता है जो कि काफी जगह सामाजिक बहिष्कार, समानता और बहुत से शोषण का सामना करता है। इस समाज को पूर्ण रूप से शोषण रहित समाज किसी भी परिस्थिति में नहीं कहा जा सकता है। जहाँ और जिस समाज में आदिवासी व दलित व्यक्ति के मुँह में पेशाब करने जैसी हरकत की जाती है तो उस समाज में पनप रहे संकीर्ण सोच के लोगों के विषय में क्या कहा जाएगा? और यदि उसके विपरीत ईसाई समाज में उसे समानता का दर्जा मिलने के साथ ही साथ आत्मिक संतुष्टि भी मिलती है तो उसे किसी भी रूप में गैरकानूनी धर्मांतरण के रूप में नहीं देखा जा सकता है। 



एन्टी-कन्वर्शन लॉ : 


    अब यदि हम एन्टी-कन्वर्शन लॉ की बात करें तो यह बताना आवश्यक है कि इस वक्त भारत देश के कुल 13 राज्यों में एंटी-कन्वर्शन लॉ लागू  किया जा चुका है। यदि हम सभी राज्यों के एन्टी-कन्वर्शन लॉ को देखते हैं तो पता चलता है कि मोटे तौर पर किसी भी व्यक्ति का प्रलोभन, लालच, सुविधा, धमकी, धोखा, असम्यक प्रभाव, उकसाना, निमंत्रण, बल द्वारा और विवाह के द्वारा अथवा विवाह के लिए या अन्य किसी प्रकार से गैर क़ानूनी तरीके से धर्मांतरण किया जाता है तो वह एन्टी-कन्वर्शन लॉ के अन्तर्गत अपराध की श्रेणी में आता है। लेकिन यदि व्यक्ति विशेष अपनी आस्था ईश्वर के किसी भी स्वरुप में रखता है चाहे उस व्यक्ति विशेष का मूल धर्म कोई भी क्यों न हो वह किसी अन्य धर्म अथवा ईश्वर के किसी भी स्वरुप में अपनी आस्था एवं विश्वास रख सकता है और ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को एन्टी-कन्वर्शन लॉ के अन्तर्गत अपराधी नहीं कहा जा सकता है और उस व्यक्ति को भी अपराधी नहीं कहा जा सकता है जिसने उस व्यक्ति विशेष को सुसमाचार दिया था अथवा धर्म के विषय में बताया था क्योंकि दोनों ही व्यक्तियों का अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान के अन्तर्गत यह जन्म सिद्ध अधिकार है अर्थात सुसमाचार देने वाले व्यक्ति का भी और सुसमाचार ग्रहण करने वाले व्यक्ति का भी।  





    अंत में यह कहा जा सकता है कि सुसमाचार के विरोध में कथित तौर पर कुछ भ्रामक बातों का मंचन किया जा रहा है। और जोशुआ प्रोजेक्ट की आड़ में निर्दोष लोगों को एन्टी-कन्वर्शन लॉ के अन्तर्गत झूठे मुक़दमे में फसाए जाने की पूर्ण सम्भावना है जिसे नाकारा नहीं जा सकता है। क़ानूनी विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है जोशुआ प्रोजेक्ट के प्रति जूठी भ्रामक बातों को फैलाए जाने की कोशिस कुछ असामाजिक तत्वों के द्वारा की जा रही है जो कि असंवैधानिक कही जा सकती है। 

नोट : यह आर्टिकल किसी भी रूप से जोशुआ प्रोजेक्ट का समर्थन अथवा खंडन नहीं करता है। इस आर्टिकल को लिखे जाने का मुख्य मकसद जोशुआ प्रोजेक्ट के सन्दर्भ में और बाइबिल की मान्यताओं के आधार पर क़ानूनी विश्लेषण करना मात्र है। इस लेख का  किसी भी धार्मिक संगठन से कोई सम्बन्ध नहीं है। 



No comments:

Powered by Blogger.