उत्तर प्रदेश में ईसाई धर्मियों के खिलाफ उत्पीड़न

By: Nempal Singh (Advocate)

Date: 16/08/2023

शासकीय सरकार की छिपी हुई हिंदू राष्ट्र की पृष्ठभूमि

    
    धार्मिक सहमति और विविधता भारतीय समाज की आदर्श गुणवत्ता है, लेकिन कई बार इस सहमति को उल्लंघन किया जाता है। उत्तर प्रदेश में ईसाई धर्मियों के खिलाफ उत्पीड़न (Religious Persecution) की चर्चा भारतीय समाज की मानवाधिकारों की खिलाफ उल्लंघन की एक घातक रूप से बढ़ती चिंता को उजागर करती है। विशेष रूप से, इस लेख में हम विचार करेंगे कि उत्तर प्रदेश की शासकीय सरकार द्वारा प्रोत्साहित हिंदू राष्ट्र की छिपी हुई योजना के तहत ईसाई धर्मियों के प्रति उत्पीड़न का को कैसे बढ़ावा दिया जा रहा है, और इस समस्या के समाधान के लिए चर्चा करेंगे।

उत्तर प्रदेश में ईसाई धर्मियों के खिलाफ उत्पीड़न:

    उत्तर प्रदेश भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है जिसमें विभिन्न धर्मों के अनुयायी रहते हैं। हालांकि धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Freedom Under Article 25 Of the Indian Constitution) और आध्यात्मिकता का प्रतीक होता है, उत्तर प्रदेश में कुछ ताक़िदी तत्वों द्वारा इसकी खिलाफी की जा रही है। विशेष रूप से ईसाई धर्मियों को उनके धर्म पर आयी उत्पीड़न (Religious Persecution) और अन्याय का सामना करना पड़ रहा है। इसके पीछे के कारणों में उत्तर प्रदेश की शासकीय सरकार द्वारा प्रोत्साहित हिंदू राष्ट्र की छिपी हुई योजना भी शामिल है।

छिपी हुई हिंदू राष्ट्र की योजना:



    उत्तर प्रदेश में हो रहे ईसाई धर्मियों के खिलाफ उत्पीड़न (Religious Persecution) के पीछे एक छिपी हुई योजना का अन्वेषण करते समय, हमें दिखाई देता है कि शासकीय सरकार द्वारा प्रोत्साहित हिंदू राष्ट्र की पूरी दिशा में यह योजना है कि वे अपने आदर्शों और मूल्यों को सभी धर्मों के प्रति थोपने की कोशिश कर रहे हैं। इससे न केवल ईसाई धर्मियों के प्रति आपत्तिजनक दृष्टिकोण पैदा हो रहा है, बल्कि समाज की विविधता को भी खतरा हो रहा है।

ईसाई समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न को रोकने के उपाय:



    ईसाई धर्मियों को अपने अधिकारों की रक्षा करने और उनके धर्म संबंधित स्वतंत्रता की सुरक्षा करने के लिए कई कदम उठाने चाहिए।

  1. जागरूकता और संवाद: ईसाई समुदाय को अपने अधिकारों की जागरूकता बढ़ानी चाहिए और समाज में विविधता की महत्वपूर्णता को एक दूसरे को समझाने का प्रयास करना चाहिए। संवाद के माध्यम से धार्मिक सहमति और समरसता की महत्वपूर्णता को बढ़ावा देना चाहिए। बहुत जरुरी यह भी हो जाता है कि हर एक व्यक्ति को क़ानूनी दायरों के विषय में जानकारी होनी चाहिए। यह सर्वविदित है कि भारतीय संविधान एक बहुत ही सहज और सजग रूप में धार्मिक स्वंत्रता (Religious Freedom Under Article 25 Of the Indian Constitution) के विषय में बताता है जिसे मौलिक अधिकार के रूप में जाना जाता है लेकिन इस बात का बोध हर एक व्यक्ति को हो इस बात को सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है। अधिकारों की सुरक्षा तभी संभव हो सकती है जब अधिकारों का बोध होगा। इस सन्दर्भ में यह ही कहा जा सकता है कि सीखने और सीखने के विषय में ध्यान दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।


  2. न्यायपालिका का सहारा लेना: उत्तर प्रदेश की ईसाई समुदाय को न्यायपालिका के सहारे अपने अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश करनी चाहिए। किसी भी प्रकार की उत्पीड़न (Religious Persecution) या अन्याय के मामलों में न्यायालय से मदद प्राप्त करना चाहिए। न्यायपालिका के विषय में यह प्रभावी रूप में कहा जा सकता है कि व्यायपालिका के माध्यम से ईसाई समुदाय के लोग अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकते हैं लेकिन इसके लिए भी जरुरी हो जाता है कि कानून के बारे में आधारभूत जानकारी हो और वह जानकारी तभी हो पाएगी जब इस समुदाय का हर एक व्यक्ति इस बात को लेकर जागरूक होगा।


  3. धार्मिक संगठनों के साथ सहयोग: ईसाई समुदाय को अन्य धार्मिक संगठनों और मानवाधिकार संरक्षण समूहों के साथ मिलकर काम करना चाहिए। यह धार्मिक अधिकारों (Religious Rights) को समझने और उनकी रक्षा करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि अमूमन ईसाई समुदाय में संगठन के अभाव को देखा जा सकता है और इसी कारण से यह इस समुदाय के लिए जरुरी हो जाता है कि धार्मिक संगठन के तौर पर संगठित होकर एक दूसरे को प्रत्साहन देते हुए अपने अधिकारों के प्रति सवेदनशील होना चाहिए।

ग्रामीण ईसाई जो केवल ईमानदारी से ईसाई धर्म में विश्वास कर रहे हैं, उन्हें कैसे सुरक्षित रहना चाहिए:

    ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे लोग जो केवल ईमानदारी से ईसाई धर्म में विश्वास कर रहे हैं, उन्हें सुरक्षित रहने के लिए निम्नलिखित कदम अपनाने चाहिए:

  1. सामुदायिक मेल मिलाप को बढ़ावा देना: ऐसे लोगों को अपने समुदाय के साथ मिलकर काम करना चाहिए और समरसता और समझदारी की महत्वपूर्णता को समझने व समझाने का प्रयास करना चाहिए। एक दूसरे के अधिकारों के प्रति उसी तरह संवेदनशील होना चाहिए जैसे कि व्यक्ति विशेष अपने अधिकारों को लेकर होता है। सामुदायिक मेल मिलाप आपसी सामंजस्य को बढ़ावा देता है जिससे वक्त पड़ने पर एक दूसरे का सहयोग संगठित रूप में किया जा सके।

  2. स्थानीय अधिकारियों के साथ संवाद: स्थानीय अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर बातचीत करना और उन्हें अपने धर्म संबंधित अधिकारों की सुरक्षा की मांग करना चाहिए। एक प्रतिनिधि मंडल के द्वारा संगठित तौर पर स्थानीय अधिकारियों के साथ संवाद करने से काफी हद तक स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। यह भी देखा गया है कि काफी मामलों में अधिकारियों को ईसाई समुदाय के विश्वास एवं आस्था और संरचना और प्रक्रिया के विषय में बोध नहीं होता है और वह उसे किसी किस्म का गैर क़ानूनी धर्मांतरण समझ बैठते हैं। इसके लिए जरुरी है कि वक्त वक्त पर स्थानीय अधिकारियों को अपने क्रिया कलापों जैसे रक्त दान शिविर व् अन्य तरह के आयोजनों में आमंत्रित करके मसीह विश्वास एवं चर्च के द्वारा की जा रही गतिविधि के विषय में जानकारी देनी चाहिए और यह बोध करवाया जाना चाहिए कि अन्य आस्था एवं विश्वास की तरह ही मसीह विश्वास एवं आस्था भी कानूनन रूप में मान्यता रखता है।


  3. समर्थन नेटवर्क भी बनाएं: यदि वे किसी प्रकार की उत्पीड़न से सामना करते हैं, तो समर्थन नेटवर्क बनाने का प्रयास करें ताकि वे सहायता प्राप्त कर सकें। इस तरह का नेटवर्क आपको एक कवच के समान सहायता प्रदान करता है। जिससे आपको हर परिस्थिति का सामना करने में आसानी होती है।

ईसाई समुदाय के लिए कुछ समाधान:

ईसाई समुदाय को अपने सामाजिक और धार्मिक अधिकारों (Religious Rights) की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित कदम अपनाने चाहिए:

  1. शिक्षा के प्रति समर्पण: ईसाई समुदाय को शिक्षा के प्रति समर्पित रहना चाहिए ताकि उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनने का अवसर मिल सके। शिक्षा के माध्यम से ही एक सशक्त समाज की स्थापना की जा सकती है। आने वाली पीढ़ी को सामाजिक दायरे में रहते हुए उच्च शिक्षा के आधार पर प्रशाशनिक अधिकारी बनने के लिए उत्प्रेरित करना चाहिए। विभागीय सहभागिता के द्वारा सहज एवं संवैधानिक तरीके से अपनी भूमिका को निभाया जा सकता है और ईसाई समुदाय सही मायनों में सशक्त बन सकता है।


  2. सामाजिक और धार्मिक अधिकारों की जानकारी: समुदाय के सदस्यों को उनके सामाजिक और धार्मिक अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए ताकि उन्हें उनकी सुरक्षा के लिए सहायता प्राप्त करने में मदद मिल सके। मूल एवं आधारभूत जानकारी के लिए संगोष्ठी एवं सेमिनार का आयोजन किया जाना चाहिए और कोशिश की जानी चाहिए कि अधिक से अधिक लोग शिक्षा को ग्रहण कर सकें।

उत्तर प्रदेश की शासकीय सरकार की भूमिका:

उत्तर प्रदेश की शासकीय सरकार को समाज में धार्मिक सहमति और समरसता को प्रोत्साहित करने का काम करना चाहिए। सरकार को सभी धर्मों के प्रति समरसता और समानता की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि समाज में विविधता बनी रह सके और किसी भी समुदाय के साथ अन्याय नहीं हो।

निष्कर्ष:
उत्तर प्रदेश में ईसाई समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के लिए समुदाय को एकजुट होकर काम करना चाहिए। शिक्षा, जागरूकता, सहमति और समरसता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सरकार की भी भूमिका भी महत्वपूर्ण है। समृद्धि और समरसता की दिशा में एक मिलकर काम करने से ही उत्तर प्रदेश जैसे राज्य की विकासशीलता संभव है, जहाँ सभी धर्मों के अनुयायी एक साथ जीने का अवसर हो।

नोट : इस लेख का केवल उद्देश्य ईसाई समुदाय पर हो रहे उत्पीड़न के सन्दर्भ में जमीनी स्तर पर विश्लेषण करके कुछ सुझवों को देना है। यह एक व्यक्तिगत आधार पर किए गया विश्लेषण है और इस लेखा का सम्बन्ध किसी भी रूप में किसी भी धार्मिक संगठन से नहीं है।


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