Cognizable and Non-cognizable offences and Christianity
By Nempal Singh (Advocate):
संज्ञेय अपराध और असंज्ञेय अपराध क्या हैं ?
यह जानना बहुत अधिक आवश्यक है कि संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध क्या होते हैं। संज्ञेय और असंज्ञेय अपराधों के सन्दर्भ में यदि कहा जाये तो कहा जा सकता है कि पुलिस के वह अधिकार जिसके अंतर्गत पुलिस को किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने की पावर निर्धारित होती है। भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत कुल 511 धाराएं आती है जिनमें से कुछ धाराएं संज्ञेय हैं और कुछ धराएं असंज्ञेय होती है। अब यह जानना जरुरी है कि संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध क्या होते हैं और पुलिस को क्या क्या अधिकार दिए गए हैं।
संज्ञेय अपराध :
ज्यादातर लोगों को इस विषय में जानकारी नहीं है कि वह कौन कौन से अपराध हैं जिनमें पुलिस को बिना गिरफ्तारी वारंट के अपराधी को गिरफ्तार करने की पावर नहीं है। संज्ञेय अपराध वह अपराध होते है जिसके अंतर्गत पुलिस को अपराध की सूचना मिलते ही मुक़दमा दर्ज करके अपराधी को गिरफ्तार करने की पावर होती है। संज्ञेय अपराध के लिए पुलिस को किसी भी प्रकार के गिरफ्तारी वारंट की आवश्यक्ता नहीं होती है। संज्ञेय अपराध घटित होने पर जब पुलिस को किसी भी प्रकार से सूचना मिलती है तो पुलिस के लिए यह जरुरी होता है कि वह संज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में पहले प्राथमिकी (ऍफ़o आईo आरo) दर्ज करे और अपराधी को गिरफ्तार करे। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कहा जा सकता है कि संज्ञेय अपराध वह अपराध होते हैं जो बड़े किस्म के अपराध माने जाते हैं जो कि ज्यादातर मामलों में एक गैरजमानती अपराध होते है जैसे किसी की हत्या करना एक संज्ञेय अपराध माना जाता है। किसी को जान से मारने की कोशिश करना भी संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। यह कहा जा सकता है कि जब कभी भी कोई संज्ञेय अपराध घटित होता है और यदि पुलिस को उस अपराध के सन्दर्भ में सूचना लिखित रूप में, मौखिक रूप में या फिर गुप्त रूप में मिलती है तो पुलिस को पावर है कि वह पहले प्राथमिकी (ऍफ़o आईo आरo) दर्ज करे और तुरंत अपराधी को बिना वारंट के गिरफ्तार करे। यह भी जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि जब कभी भी कोई संज्ञेय अपराध घटित होता है और जब मुदाई के द्वारा या फिर किसी के भी द्वारा उस संज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में पुलिस को सूचना दी जाती है तो पुलिस उस संज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में प्रथिमिकी (ऍफ़o आईo आरo) दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है। यूँ तो पुलिस को कानून के अंतर्गत बहुत से अधिकार और पावर्स प्रदान की गयी है लेकिन पुलिस को कानून के अंतर्गत काम करना जरुरी है। हर एक मसीह सेवक के लिए भी जरुरी है कि वह कानून के विषय में जानकारी रखे जिससे वह किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना कर सके। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि भारतीय दण्ड संहिता में कुल 511 धाराएँ हैं और उनमें से कुछ धाराएँ संज्ञेय हैं और कुछ धाराएँ असंज्ञेय हैं। संज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में जब कभी भी प्राथमिकी (ऍफ़o आईo आरo) दर्ज की जाती है तो उसकी एक कॉपी निःशुल्क शिकायत कर्ता को प्रदान की जाती है जो कि कानूनन रूप से बहुत जरुरी है। जब कभी भी कोई भी संज्ञेय अपराध घटित होता है और उस घटना के सन्दर्भ में यदि पुलिस प्राथमिकी (ऍफ़o आईo आरo) दर्ज करने से यदि मना करती है तो इस सन्दर्भ में उसकी लिखित शिकायत उस थाना क्षेत्र के उच्च अधिकारी जिला कप्तान (एसo पीo) यानि कि पुलिस अधीक्षक को की जा सकती है। यदि पुलिस अधीक्षक के आदेशों के बाद भी उस इलाका की पुलिस जिस इलाके में घटना घटित हुई है ऍफ़o आईo आरo दर्ज नहीं करती है तो उस संज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में एक याचिका धारा 482 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत उच्च न्यायलय में दायर की जा सकती है और पुलिस के खिलाफ आदेश प्राप्त किए जा सकते है। तो अब यह स्पष्ट है कि संज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में पुलिस के लिए जरुरी है कि वह सूचना मिलते ही ऍफ़o आईo आरo दर्ज करे और पुलिस को पावर है कि वह बिना गिरफ्तारी वारंट के अपराधी को गिरफ्तार कर सकती है।
>> धारा 295 भारतीय दण्ड संहिता एक संज्ञेय अपराध है और इस अपराध की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को 2 साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व जुर्माना दोनों के ही द्वारा दण्डित किया जा सकता है। यह एक गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आता है।
>> धारा 295 A भारतीय दण्ड संहिता एक संज्ञेय अपराध है और इस अपराध की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को 3 साल तक की सजा व् जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों के ही द्वारा दण्डित किया जा सकता है। यह एक गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आता है।
>> धारा 296 भारतीय दण्ड संहिता भी एक संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन यह एक जमानती अपराध है। और इस धारा की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को एक साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों ही के साथ दण्डित किया जा सकता है।
>> धारा 297 भारतीय दण्ड संहिता भी एक संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन यह भी एक जमानती अपराध है और इस धारा की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को एक साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों ही के द्वारा दण्डित किया जा सकता है।
>> धारा 298 भारतीय दण्ड संहिता एक असंज्ञेय अपराध है और यह भी एक जमानती अपराध है। इस धारा की परिभाषा के अंतर्गत भी अपराधी को एक साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों ही के द्वारा दण्डित किया जा सकता है।
असंज्ञेय अपराध :
अब संज्ञेय अपराधों के विषय में जानने के साथ साथ यह भी आवश्यक है कि असंज्ञेय अपराध क्या होते है इस विषय में भी जानकारी ली जाए। असंज्ञेय अपराध वह अपराध होते हैं जिसमें पुलिस को बिना किसी गिरफ्तारी वारंट के अपराधी को गिरफ्तार करने की पावर नहीं होती है। इस तरह के अपराध अमूमन छोटे किस्म के अपराध होते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को धक्का दे देता है और वह गिर जाता है तो उस किस्म का अपराध असंज्ञेय अपराध माना जाएगा। यदि एक अन्य उदाहरण के विषय में बताया जाए तो यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे ब्यक्ति को थप्पड़ मरता है तो उस किस्म का अपराध भी असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है। जब कभी भी असंज्ञेय अपराध घटित होता है तो उस घटना के सन्दर्भ में सूचना पुलिस को दी जाती है और उस सूचना को पुलिस द्वारा रोजनामचे में दर्ज किया जाता है और फिर उस सूचना को इलाका मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जाता है और फिर मामले में जाँच के आदेश इलाका मजिस्ट्रेट के द्वारा पुलिस को दिए जाते हैं। यह ध्यान रहे कि पुलिस को असंज्ञेय अपराध के सन्दर्भ में सिर्फ जाँच करने का अधिकार है। अपराधी को गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है। किसी भी असंज्ञेय अपराध को करने वाले अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए गिरफ्तारी वारंट का होना जरुरी होता है जिसे इलाका मजिस्ट्रेट के द्वारा जारी किया जाता है।संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध मसीहत की नज़र से :
हर एक मसीह सेवक को संज्ञेय और असंज्ञेय अपराधों को जानने के बाद यह भी जानना आवश्यक है कि मसीह सेवा में अमूमन हम पाते हैं कि काफी लोगों द्वारा मसीह सेवकों पर धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाया जाता है। जैसा कि बताया गया था कि हरियाणा और पंजाब में धर्मान्तरण के विषय में कोई कानून नहीं है और इस परिपेक्ष्य में पुलिस द्वारा जबरन मसीह लोगों पर या सेवकों पर धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुँचाने का आरोप लगा कर धारा 295, 295 A , 296, 297 व् 298 भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत ज्यादातर मामलों में झूठा आरोप लगा दिया जाता है। अब यह समझना जरुरी है कि धारा 295, 295 A , 296, 297 व् 298 संज्ञेय हैं या असंज्ञेय अपराध हैं। अब जब कभी भी पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार के धर्मान्तरण के झूठे मामले में ऍफ़ आई आर की जाती है तो पुलिस की कोशिश रहती है कि वह ऐसी धाराएं लगाए जिससे उनको अपराधी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की पावर मिल जाए। अब ऊपर लिखित सभी धाराओं के विषय में संक्षेप में जानना जरुरी है कि यह सभी धाराएं किस किस्म की धाराएँ हैं।>> धारा 295 भारतीय दण्ड संहिता एक संज्ञेय अपराध है और इस अपराध की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को 2 साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व जुर्माना दोनों के ही द्वारा दण्डित किया जा सकता है। यह एक गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आता है।
>> धारा 295 A भारतीय दण्ड संहिता एक संज्ञेय अपराध है और इस अपराध की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को 3 साल तक की सजा व् जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों के ही द्वारा दण्डित किया जा सकता है। यह एक गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आता है।
>> धारा 296 भारतीय दण्ड संहिता भी एक संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन यह एक जमानती अपराध है। और इस धारा की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को एक साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों ही के साथ दण्डित किया जा सकता है।
>> धारा 297 भारतीय दण्ड संहिता भी एक संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है लेकिन यह भी एक जमानती अपराध है और इस धारा की परिभाषा के अंतर्गत अपराधी को एक साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों ही के द्वारा दण्डित किया जा सकता है।
>> धारा 298 भारतीय दण्ड संहिता एक असंज्ञेय अपराध है और यह भी एक जमानती अपराध है। इस धारा की परिभाषा के अंतर्गत भी अपराधी को एक साल तक की सजा या जुर्माना या फिर सजा व् जुर्माना दोनों ही के द्वारा दण्डित किया जा सकता है।
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