मसीह विश्वास कानून की नज़र में Anti conversion Law In India

By Nempal Singh (Advocate): 




धर्म परिवर्तन और कानूनी दायरे 

       जहाँ तक धर्म परिवर्तन की बात है जैसा कि आप सब जानते हैं कि कुछ कट्टर संगठन इस बात का दावा करते है कि मसीह समाज के लोगों के द्वारा दूसरे धर्म के लोगों का धर्मान्तरण कराया जाता है। काफी आरोप ऐसे भी लगाए जाते हैं कि मसीह समाज के द्वारा प्रलोभन दिया जाता है और उस प्रलोभन में आकर गरीब और भोली भाली जनता धर्मान्तरण कर लेती है। अब सवाल यह उठता है कि क्या धर्मान्तरण के सन्दर्भ में कोई ऐसा कानून है जो कि इसको अपराध के रूप में परिभाषित करता है या फिर ऐसा क्या और कौन सा तथ्य है जिसके आधार पर धर्मान्तरण को एक अपराध के दायरे में माना जाता है ? अब यह जान लेना बहुत अधिक आवश्यक है कि धर्मान्तरण को रोकने के लिए धर्मान्तरण विरोधी कानून पारित किया गया था जो कि भारत के काफी राज्यों में लागू किया गया है जिनमें झारखण्ड , ओडिसा , मध्य प्रदेश , हिमांचल प्रदेश व् गुजरात राज्य शामिल हैं। उत्तर भारत में अभी काफी ऐसे राज्य हैं जहाँ धर्मान्तरण विरोधी कानून लागू नहीं किया गया है।  धर्मान्तरण विरोधी कानून एक ऐसा कानून है जो विस्तृत रूप में परिभाषित नहीं है और इसमें काफी ऐसी खामियां है जो कि निर्दोष लोगों के खिलाफ इस्तेमाल की जा सकती हैं। आम तौर पर देखा गया है कि कुछ कट्टर धर्म पंथी लोगों के द्वारा ख़ास तौर पर मसीह लोगों के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया जाता है जो कि बिलकुल निराधार होता है। यानि कि कहा जा सकता है कि धर्मान्तरण विरोधी कानून का नाजायज रूप में मसीह समाज के लोगो के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है और झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है। 


धर्मान्तरण और मसीहत : 

     जैसा कि आरोप लगाया जाता है कि मसीह सेवकों अथवा मिशिनरी के द्वारा धर्मान्तरण कराया जाता है और भोले भाले लोगों को प्रलोभन देकर उनका धर्मान्तरण किया जाता है। अब यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि जिन राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून है वहां तो उसी कानून के अंतर्गत कार्यवाही की जाती है और जहाँ धर्मान्तरण कानून नहीं है वहां उन राज्यों में भारतीय दण्ड संहिता की धाराएं 295 , 295 A , 296 , 297 व् 298 का ही इस्तेमाल मसीह लोगो व् मिशनरियों के खिलाफ किया जाता है जो कि यह सभी धाराएं धर्मान्तरण के विषय में बिलकुल भी परिभाषित नहीं है लेकिन फिर भी इन सभी धाराओं का इस्तेमाल मसीह मिशनरियों के खिलाफ किया जाता है और झूठा मुकदमा बना दिया जाता है। अब जबकि मसीह समाज आत्मिक तौर पर जानता है कि मसीहत एक धर्म नहीं बल्कि एक विश्वास है और किसी के विश्वास की स्थिति को धर्मान्तरण कैसे कहा जा सकता है। अब यह भी जान लेना आवश्यक है कि भौतिक रूप में या फिर कहा जाए तो सांसारिक व् कानूनी रूप में धर्मान्तरण किस स्थिति को मान लिया जाता है ? तो जवाब में कहा जा सकता है कि जब किसी अन्य धर्म के व्यक्ति के द्वारा उसके अपने विश्वास के आधार पर वह बपतिस्मा लेता है तो वह स्तिथि उसकी कानूनन रूप में धर्म बदल लेने की स्तिथि मानी जाती है। अब जैसा कि बताया गया है कि भारत के काफी ऐसे राज्य हैं जहाँ धर्मान्तरण विरोधी कानून नहीं है तो वहां ऊपर लिखित धाराओं का मसीह लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है जो कि बिलकुल भी धर्मान्तरण के सन्दर्भ में परिभाषित नहीं है बल्कि मोटे तौर पर उक्त सभी धाराएं 295 से लेकर 298 तक सभी धार्मिक भावनाओं से सम्बंधित है। आम तौर पर देखा गया है कि मसीह सेवकों के द्वारा बपतिस्मे के संस्कार को एक आत्मिक संस्कार के रूप में माना जाता है लिहाजा वह इस संस्कार के बाद लोगों को सर्टिफिकेट तक भी दे देते हैं और इस बात का उनके पास कोई प्रमाण नहीं होता कि बपतिस्मा लेने वाले व्यक्ति ने अपनी मर्जी से बिना किसी दवाब या प्रलोभन के बपतिस्मा लिया है। इस सन्दर्भ में जरुरी है कि कानूनी मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए इस बात को प्रमाणित करने के लिए सबूत के तौर पर उस व्यक्ति से हलफनामा लेना चाहिए। जो कि  बपतिस्मे की सत्यता प्रमाणित करता हो और मसीह सेवकों को सार्टिफिकेट देने से भी बचना चाहिए। क्योंकि सर्टिफिकेट उसी स्तिथि में देना चाहिए जब बपतिस्मा लेने वाला व्यक्ति एक हलफनामे से साथ साथ क्षेत्रीय अखबार में एक डेक्लारेशन ( घोषणा ) का कालम प्रकाशित कराए और यदि बपतिस्मा लेने वाला व्यक्ति अखबार में यह घोषणा प्रकाशित करने के लिए तैयार न हो तो उस स्थिति में मसीह सेवक के द्वारा बिलकुल भी किसी भी तरह का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाना चाहिए। बपतिस्मा देने से पहले उस व्यक्ति को जांचना और परखना भी आज के दौर में जरुरी पहलू माना जा सकता है। बपतिस्मे के लिए हलफनामे (Affidavit) का प्रारूप :



भौतिकता व् कानून की नज़र में मसीह विश्वास 

    भौतिकता व् कानून की नज़र में मसीह विश्वास आत्मिक नहीं है और गैरमसीह लोगों व् कानून के द्वारा मसीह विश्वास को एक आत्मिक अनुभव नहीं माना जा सकता है। गैरमसीह लोग तब तक मसीहत को आत्मिक नहीं मान सकते हैं  जब तक कि उनके लिए परमेश्वर की वह योजना ना हो। उस विवेक के द्वारा ही एक इंसान उस बात को आत्मिक रीती से समझ सकता है और गलती सिर्फ यहाँ होती है जब मसीह सेवकों के द्वारा कानूनी दायरे को और भौतिक संसार को भी आत्मिक रूप में देखा जाता है जो कि कानूनी नजरिए से आत्मिकता को साबित करना असंभव है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक धार्मिक अधिकारों से संबंधित स्वतन्त्रता को परिभाषित करता है। लेकिन राज्य को भी यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी तरह का कानून बना सकता है। कानून को कानून के नजरिए से ही देखा जाना चाहिए जिससे कानूनी दायरे में रहकर कानूनी तौर पर सेवा की जा सके। 



No comments:

Powered by Blogger.