करों के संदाय के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता . Article 27 of the Indian Constitution

By Nempal Singh (Advocate):




करों के संदाय के सन्दर्भ में स्वतन्त्रता 
           इस अनुच्छेद के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को करों के संदाय यानि कि करों के भुगतान किए जाने के विषय में बाध्य नहीं किया जा सकता जिसके द्वारा किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि होती है या फिर पोषण होता है। यदि साधारण शब्दों में कहा जाये तो कहा जा सकता है कि यदि किसी व्यक्ति या संगठन के द्वारा किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय के पोषण के लिए किसी किस्म का धन संचय किया जाता है तो उस व्यक्ति को राज्य द्वारा बाध्य नहीं किया जा सकता कि वह उस धन संचय के लिए राज्य सरकार को कर का किसी भी किस्म से भुगतान करे। 

अनुच्छेद 27 अंग्रेजी में परिभाषा :

मसीह सेवा में इस अनुच्छेद का महत्व :
          मसीह सेवा में भी इस अनुच्छेद का काफी महत्व है।  इस बात का पता होना अत्यंत आवश्यक है कि यह अनुच्छेद किसी भी व्यक्ति को इस बात का अधिकार व् स्वतंत्रता प्रदान करता है जो किसी धर्म विशेष से जुड़ा हुआ हो और किसी धर्म के प्रचार व् प्रसार व् उस धर्म के पोषण के लिए यदि वह किसी प्रकार से धन का अर्जन करता है तो उस व्यक्ति को राज्य द्वारा उस संचित धन के सन्दर्भ में कर के भुगतान के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। अब हम यह आसानी से जान गए है कि मसीह सेवा में भी यदि किसी भी मसीह व्यक्ति या संस्था के द्वारा कानूनन रूप से चल रही किसी भी मसीह कलीसिया के या फिर मसीहत के प्रचार व् प्रसार के लिए व् पोषण के लिए यदि धन संचय किया जाता है तो उस स्थिति में राज्य द्वारा मसीह कलीसिया को या किसी भी जिम्मेदार मसीह व्यक्ति विशेष को  रोका नहीं जा सकता है और ना ही उस कलीसिया को या फिर उस मसीह व्यक्ति विशेष को उस धन के सन्दर्भ में राज्य द्वारा कर के भुगतान के लिए बाध्य किया जा सकता है।  अब सवाल यह उठता है कि एक अकेला मसीह व्यक्ति यदि धन संचय धर्म के प्रचार व् प्रसार व् मसीह धर्म के पोषण के लिए धन का संचय करता है तो वह किस प्रकार से इस बात को साबित कर सकता है कि उसने वह धन धार्मिक कार्यों के लिए संचित किया है। इस सवाल के जवाब में इस बात को समझना जरुरी है कि अनुच्छेद 25 भारत के हर एक नागरिक को किसी भी धर्म को मानने व् ईश्वर के किसी भी रूप को मानने व् अपनी मान्यता के अनुसार उस धर्म के मुताबिक आचरण करने का अधिकार प्रदान करता है, तो इस बात को भी अनुच्छेद 25 के परिपेक्ष्य में समझा जा सकता है कि किसी भी नागरिक को उस अपने विश्वास के आधार पर उस धर्म के पोषण के लिए या फिर उस धर्म के सन्दर्भ में जो भी खर्चा होता है उस सन्दर्भ में धन को संचय करने का अधिकार है और उस पर कर दिये जाने के लिए वह बाध्य नहीं है।  अब जो दूसर सवाल उठता है वह यह है कि जो धन संचय किया गया है वह पूरी तरह से मसीह या किसी भी धार्मिक कार्य के लिए संचय किया गया है इस बात का प्रमाण क्या हो सकता है ? तो इस सवाल के उत्तर के रूप में कहा जा सकता है कि यदि कोई मसीह व्यक्ति किसी मसीह धार्मिक समूह या संगठन जो कि पंजीकृत है और वैधानिक रूप से चलाया जा रहा है और अपनी कमाई हुई धन राशि में से कुछ हिस्सा उस संस्था को दान के रूप में धार्मिक कार्य के लिए देता है और वह संस्था या संगठन उस व्यक्ति को रसीद प्रदान करती है तो वह व्यक्ति अपनी उस धन राशि के जो उसने दान में दी है उसके लिए राज्य को नियम अनुसार कुछ प्रतिशत कर भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं है और साथ ही साथ वह मसीह संस्था व् संगठन भी उस दान की गयी राशि के लिए राज्य को कर देने के लिए बाध्य नहीं है लेकिन इसके लिए भारत में इन्कमटैक्स कानून है जिसके अंतर्गत कुछ नियम व् शर्तें है जो सभी धार्मिक ट्रस्ट पर लागू होती है। अब क्योंकि हर एक धर्म के व्यक्तियों या फिर संप्रदाय के लोगों को किसी भी संस्था को धार्मिक उद्देश्य से बनाने व् चलने की स्वतंत्रता के विषय में अनुच्छेद 26 के अंतर्गत व्याख्यान किया गया है और किसी भी वैधानिक रूप से चलाई जा रही संस्था या संगठन को भी एक व्यक्ति के नजरिए से ही देखा जाता है। अब इसमें संदेह की कोई बात नहीं समझी जानी चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद के अंतर्गत राज्य को किसी भी प्रकार का कानून बनाने का भी अधिकार है जिसके अंतर्गत यह तो शामिल है कि संविधान के अनुसार किसी व्यक्ति को धार्मिक कार्यों से सम्बंधित धन के सन्दर्भ में राज्य को कर देने के लिए बाध्य तो नहीं किया जा सकता लेकिन इसके साथ साथ राज्य द्वारा कानून भी बना दिया गया है जिसे इन्कमटैक्स कानून (आयकर कानून ) के नाम से जाना जाता है।  जिसके अंतर्गत कुछ नियम व् शर्तें निर्धारित की गयी हैं।  जिसके अनुसार यदि कोई धार्मिक ट्रस्ट उन मानकों पर खरा उतरता है तो उसके अनुसार उस ट्रस्ट को कर में छूट दी जाती है। आयकर कानून की जानकारी के लिए  धार्मिक ट्रस्ट के  लिए जरुरी है की वह समय समय पर टैक्स एक्सपर्ट की सलाह लें। 


महत्वपूर्ण क़ानूनी दायरे : अनुच्छेद 27 के अंतर्गत हालाँकि यह व्याख्या दी गयी है कि संविधान इस बात को परिभाषित करता है कि कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए किये गए धन के संचय में वह व्यक्ति राज्य को कर देने के लिए बाध्य नहीं है लेकिन यदि कोई धार्मिक या फिर चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया जाता है और यदि कोई धार्मिक या चैरिटेबल ट्रस्ट टैक्स में संचय की गयी धन राशि पर टैक्स में छूट चाहता  तो इसके लिए जरुरी है कि वह संस्था यानि कि ट्रस्ट धारा 12 aa के अनुसार टैक्स के सन्दर्भ में रजिस्टर्ड होनी चाहिए। जैसे कि कुछ मसीह संस्थाएं है जो टैक्स के दायरे के मद्देनज़र रजिस्टर्ड है। काफी ऐसे चैरिटेबल और धार्मिक ट्रस्ट है जो कि ना तो ट्रस्ट एक्ट के अनुसार पंजीकृत है और ना ही टैक्स के सन्दर्भ में पंजीकृत हैं। ऐसी संस्थाओं को राज्य द्वारा टैक्स में छूट का लाभ नहीं दिया जा सकता है।  इसके लिए जरुरी है कि यदि मसीह या फिर किसी भी तरह का ट्रस्ट बनाया जाता है तो वह अपने लिखित उद्देश्यों के अनुसार कार्य करे व् धन राशि को भी उसी उद्देश्य से खर्च भी करे। इसके लिए ट्रस्ट को रजिस्टर कराते समय अपने ट्रस्ट के उद्देश्यों को मुख्य रूप से जाँच लेना अत्यंत आवश्यक है। ट्रस्ट का सारा लेखा जोखा भी नियमित होना बहुत जरुरी है। इस के साथ साथ ही साथ यह भी जान लेना आवश्यक है कि ट्रस्ट की गतिविधि और लेखा जोखा किसी भी रूप में अभी तक सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत नहीं आया है जबकि चैरिटेबल और रिलीजियस सोसाइटी सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में आती है। 
                     अब  यह स्पष्ट है कि रिलीजियस ( धार्मिक )  ट्रस्ट बनाया तो जा  सकता है लेकिन अनुच्छेद 27 के अंतर्गत कर में छूट इनकम टैक्स कानून के अनुसार ही मिल पाती है यदि वह धार्मिक ट्रस्ट कानूनन पंजीकृत है और टैक्स के मद्देनज़र भी यदि उस ट्रस्ट का पंजीकरण हुआ है तो। 
                           
                 

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