अनुच्छेद 26 भारतीय संविधान और मसीहत / Article 26 of the Indian Constitution and Christianity

By Nempal Singh (Advocate): 




धार्मिक कार्यों के लिए प्रबन्ध की स्वंतन्त्रता अनुच्छेद 26 (Article 26):
                सदाचार , लोक व्यवस्था व् लोक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 26 (Article 26) भारतीय संविधान के अंतर्गत किसी भी धार्मिक समुदाय को अथवा किसी  भी प्रकार के संप्रदाय को किसी भी प्रकार के वैधानिक रूप से धार्मिक संस्थाओ की स्थापना करने व् उनका गठन करने या चलाने या फिर उनका प्रबंध करने की स्वतन्त्रता है। जिसके अनुसार प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय व् उसके अनुभाग को धार्मिक कार्यों की स्थापना करने, उनका पोषण करने व् उनका प्रबंधन करने की स्वतन्त्रता है। किसी भी प्रकार की चल व् अचल सम्पत्ति के प्रबंधन व् प्रशाशन का अधिकार भी प्राप्त है। 


अनुच्छेद 26 अंग्रेजी में :

मसीह सेवकाई में इस अनुच्छेद का महत्व :
                 अब यदि हम मसीह सेवकाई में इस अनुच्छेद के महत्व की बात करें तो बहुत आसानी से कहा जा सकता है की वैधानिक यानि के कानूनन रूप से यदि मसीह सेवकाई को चलाने के लिए यदि कोई भी मसीह  समुदाय को या फिर मसीह संप्रदाय को किसी भी प्रकार से कानून के दायरे में रहते हुए इस अनुच्छेद के अंतर्गत लोक व्यवस्था, सदाचार व् लोक स्वास्थ्य का धयान हुए किसी भी प्रकार से धार्मिक संस्थाओं की स्थापना करने का अधिकार है और उसका प्रबन्ध करने व् साथ ही साथ उन संस्थाओं का धार्मिक कार्यों के उद्देश्य से उन संस्थाओं का पोषण यानि की तरक्की करने की भी स्वंतन्त्रता है। इसके अलावा यह धार्मिक मसीह संस्थाएं किसी भी प्रकार की भूमि , चल व् अचल सम्पत्ति का अर्जन भी कर सकती है। अब यहाँ सवाल यह उठता है कि वैधानिक रूप क्या हो सकता है यानि की कानूनन रूप से किस प्रकार मसीह संस्थाएं चलाई जा सकती है। इसके जवाब में कहा जा सकता है कि यदि मसीह संस्थाओं की स्थापना की जाती है तो वह सबसे पहले मसीह संप्रदाय यानि कि मसीह समाज के लोगों के द्वारा ही की जानी चाहिए किसी अन्य संप्रदाय का व्यक्ति मसीह संस्था की स्थापना नहीं कर सकता है। अब यदि मसीह संस्था की स्थापना किसी प्रकार से धार्मिक व् दानशील यानि की लोक हित  के उद्देश्य से की  जाती है तो वह संस्था वैधानिक रूप से यदि कि कानूनन रूप से पंजीकृत होनी चाहिए। और यदि वह मसीह संस्था पंजीकृत नहीं है तो उन मसीह संस्थाओं को  परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि एक पंजीकृत संस्था को ही एक वैधानिक यानि की कानूनन रूप में जाना व् समझा जा सकता है। ज्ञात रहे कि जैसा की अनुच्छेद 25 की व्याख्या में दिया गया है कि किसी भी भारतीय नागरिक को अपने अन्तः करण यानि की अपने अंदरूनी मन से ईश्वर के किसी भी रूप को व् किसी भी धर्म को मानने व् उसका प्रचार व् प्रसार करने की स्वतन्त्रता है और उस परिपेक्ष में किसी भी व्यक्ति को किसी भी दूसरे व्यक्ति के द्वारा या फिर प्रशाशन के द्वारा या फिर राज्य सरकार के द्वारा तब तक नहीं रोका जा सकता है जब तक कि वह व्यक्ति अपने इस अधिकार का प्रयोग करते हुए कोई गैरकानूनी काम जो की भारतीय कानून के अनुसार गैरकानूनी माना जाता हो नहीं कर देता। यानि कि यदि कोई भी भारतीय नागरिक अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय यदि कोई गैर क़ानूनी काम करता है और कानून का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ कानून के अंतर्गत कार्यवाही की जा सकती है। अधिक जानकारी के लिए (Click Here) 
                               अब यह सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि अनुच्छेद 26 के अंतर्गत मसीह संस्थाओं को अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह संस्थाएँ धार्मिक कार्यों को करने का काम कर सकती है।  उदहारण के तौर पर यदि कोई मसीह संस्था पंजीकरण के बाद किसी प्रकार का रक्तदान शिविर लगवाती है और उसमें प्रशाशनिक अधिकारियों को बुलाती है तो वह एक सामाजिक कार्य के रूप में देखा जाएगा और एक सराहनीय कदम होगा इसके अलावा धार्मिक कार्यों में भी प्रशाशन को शामिल किया जा सकता है जैसे कि किसी किस्म की मीटिंग में किसी भी उच्च अधिकारी को भी आमंत्रण दिया जा सकता है। अब यह तो स्पष्ट है कि मसीह संस्थाएँ किसी भी चल व् अचल संपत्ति का अर्जन कर सकती है। 


सदाचार, लोक व्यवस्था व् लोक स्वास्थ्य का क्या मतलब है :
                सदाचार, लोक व्यवस्था व् लोक स्वस्थ्य का साधारण तौर पर और वैधानिक तौर पर अर्थ देखा जाए तो बड़ी आसानी से समझा जा सकता है कि यदि कोई भी संप्रदाय किसी ऐसी संस्था का गठन करता है जो कि सदाचार का पालन नहीं करते , लोगों के स्वास्थ्य को किसी भी प्रकार से बुरी तरह से प्रभावित करता है और यदि किसी भी प्रकार से वह संस्था या संगठन धर्म से नाम पर लोगों के साथ बुरा व्यवहार करता है व् किसी भी प्रकार से वह संगठन धर्म के नाम पर गैर कानूनी कार्य करता है या लोगों को घात करता है  या फिर लोक व्यवस्था को नुक्सान पहुंचाता है तो उस प्रकार का संगठन और सांप्रदायिक धार्मिक संस्था गैर संवैधानिक मानी जाएगी।  लेकिन दुर्भाग्यवश भारत में भी काफी ऐसी संस्थाएं है जो  धर्म के नाम पर गैर क़ानूनी कार्य करती हैं जिसे आप सभी जानते भी हैं।     


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