क्या पूरे भारत देश में लागू होने वाला है गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून ? (एक क़ानूनी विश्लेषण)

Nempal Singh (Advocate) 

Date: 19/11/2022


क्या पूरे देश में लागू होने वाला है गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून ?




    माननीय सर्वोच्च न्यायलय के 14 नवंबर 2022 के आदेशों के अंतर्गत अब यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस पूरे देश में एक केंद्रीय गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून को लागू किया जा सकता है। गौरतलब है कि हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बी० जे० पी० लीडर एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय के द्वारा एक याचिका (पेटिशन) दायर की गयी और कहा गया कि भारत देश में गैरकानूनी धर्मांतरण के मामलों में बढ़ोतरी होती जा रही है। अपनी याचिका में उपाध्याय ने कहा कि प्रलोभन, धमकी, बल, दबाव व् अन्य गैरकानूनी तरीकों से अनुसूचित जाती व् अनुसूचित जनजाति व् अनपढ़ व् गरीब लोगों का बड़े स्तर पर धर्मांतरण किया जा रहा है जो कि पूरे देश के लिए एक गंभीर समस्या है और इस प्रकार की गतिविधि को जल्द से जल्द रोका जाना जरुरी है। वहीँ इस याचिका की सुनवाई करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय की एक बैंच ने जिसमें माननीय जस्टिस ऍम० आर० शाह और जस्टिस हिमा कोहली ने केंद्र सरकार को याचिका (पेटिशन) पर सुनवाई करते हुए कहा कि भारत में यदि इस प्रकार धर्मांतरण के मामले बढ़ते जा रहे हैं तो यह भारत की सुरक्षा के लिए व् नागरिकों के मौलिक अधिकारों के लिए खतरा हो सकता है और केंद्र सरकार को नोटिस करते हुए यह कहा कि केंद्र सरकार अपने पक्ष को इस मुद्दे पर स्पष्ट करे कि केंद्र सरकार के द्वारा क्या क्या कदम गैरकानूनी धर्मांतरण को रोकने के लिए उठाए जा रहे हैं और कौन कौन से कदम उठाए जा सकते हैं।  माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि हालाँकि देश में धार्मिक स्वंतंत्रता का अधिकार हर एक नागरिक को है लेकिन यह अधिकार बल या प्रलोभन या किसी भी गैरकानूनी तरीके से धर्मांतरण करने के विषय में नहीं है। 

 



    माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि इस देश में स्वेच्छा से धर्मांतरण करना हर एक नागरिक का संवैधानिक अधिकार है और वह धर्मांतरण कर सकता है और उस अपनी आस्था का शांति पूर्वक तरीके से प्रचार प्रसार भी कर सकता है।  आगे न्यायालय ने कहा कि यह देश एक धर्मनिर्पेक्ष्य देश है और हर एक नागरिक अपनी स्वेच्छा से अपनी आस्था का चयन कर सकता है लेकिन यह किसी दबाव या बल के द्वारा या किसी और गैरकानूनी तरीके से नहीं होना चाहिए।  


    माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस संदर्भ में अपना पक्ष रखने के लिए केंद्र सरकार को 22 नवम्बर 2022 तक का समय दिया है और इस याचिका की सुनवाई 28 नवम्बर 2022 के लिए निर्धारित की है। बी० जे० पी० लीडर एडवोकेट अश्विनी उपध्याय द्वारा दायर की गयी इस 2022 की याचिका में माननीय सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण अप्रैल 2021 में अश्विनी उपाध्याय द्वारा ही दायर की गयी एक अन्य याचिका की सुनवाई से बिलकुल अलग है, जिसमें माननीय जस्टिस रोहिंटन ऍफ़ नरीमन के द्वारा उपाध्याय की याचिका को स्वीकार करने से नकार दिया गया था और उस याचिका में उपाध्याय के द्वारा पूरे देश में गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून को लागू करने की मांग की गयी थी और माननीय जस्टिस रोहिंटन ऍफ़ नरीमन के द्वारा इस याचिका के विषय में राय व्यक्त करते हुए कहा गया था कि इस प्रकार की याचिका देश के लिए बहुत घातक हो सकती है और उपाध्याय पर जुर्माना लगाने की बात सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कही गयी थी।  लेकिन अब बी० जे० पी० लीडर व् एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की 2022 में दायर की गयी याचिका में माननीय सर्वोच्च न्यायलय की राय व् दृष्टिकोण यह स्पष्ट करता है कि गैरकानूनी धर्मांतरण को लेकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय का रुख अब सख्त है। इस बात को बहुत गहराई से समझने की जरुरत है कि क्या केंद्र सरकार पर इस बात का दबाव हो सकता है कि केन्द्र सरकार एक नया गैर क़ानूनी धर्मांतरण निषेध कानून इस पूरे देश में लागू करने के लिए बाध्य हो जाए ? यह एक बड़ा सवाल है और यह केंद्र सरकार के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष 22 नवंबर 2022 को दायर किए जाने वाले अपने जवाब अथवा स्पष्टीकरण के द्वारा ही स्पष्ट हो सकेगा कि आखिरकार केंद्र सरकार गैर क़ानूनी धर्मांतरण के सन्दर्भ में क्या क्या कदम उठा रही है या उठाने वाली है। अब एक केंद्रीय गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून केंद्र सरकार के द्वारा पूरे देश में लागू किया जा सकता है इस बात को नकारा नहीं जा सकता है। 


केंद्रीय गैर क़ानूनी धर्मांतरण कानून का मसीह आस्था पर पड़ने वाला संभावित असर :



    यह स्पष्ट किया जाना जरुरी है कि इस वक्त माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कुल दो धार्मिक मामलों में सुनवाई चल रही है जिसमें अभी कुछ कहा जाना जल्दबाजी कही जा सकती है। गौर तालाब है कि इस साल 2022 में एक जनहित याचिका मसीह समाज के द्वारा दायर की गयी थी जिसमें केंद्र सरकार पर यह आरोप लगाया गया था कि भारत में मसीह समुदाय के लोगों के विरूद्ध घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और यह भी आरोप लगाया गया था कि मसीह समुदाय को उनकी आस्था के चलते निशाना बनाया जा रहा है और झूठे मुक़दमे दर्ज किए जा रहे हैं। इस सन्दर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस किया था और केंद्र सरकार के द्वारा इन आरोपों को सिरे से नकार दिया गया था और फिर इस मामले में कुल आठ राज्यों को अपने स्तर पर मामलों की जाँच करने के विषय में आदेश दिया गया था। जिनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, हरियाणा, कर्नाटका, मध्यप्रदेश, ओड़िसा व् उत्तर प्रदेश शामिल हैं। अभी इन सभी राज्यों में जाँच की जा रही है। वहीँ दूसरी और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा गैरकानूनी धर्मांतरण से सम्बंधित याचिका दायर की गयी है जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केन्द्र सरकार से जवाब व् स्पष्टीकरण माँगा गया है और अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। अब इस बात को समझना भी आवश्यक है कि यदि केंद्र सरकार के द्वारा एक गैर क़ानूनी धर्मांतरण निषेध कानून पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा तो संभावित तौर पर उस केंद्रीय गैर क़ानूनी धर्मांतरण निषेध कानून का दुरूपयोग किया जा सकता है जैसा कि कथित तौर पर मसीह समुदाय के द्वारा कहा जाता रहा है।  




    अब इस बात को कानून के नजरिए से समझना जरुरी है कि इस देश में कुल ऐसे 11 राज्य हैं जिनमें गैर क़ानूनी धर्मांतरण निषेध कानून को लागू किया गया है। इन कानूनों में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि अधिकतर राज्यों में जो कानून लागू किया गया है उनमें किसी भी व्यक्ति विशेष पर धर्मांतरण सम्बन्धी आरोप यदि लगाया जाता है तो उस परिस्थिति में केवल आरोपी ही वह व्यक्ति होगा जो इस तथ्य को प्रमाणित करेगा कि उसने गैर क़ानूनी तरीके से किसी का धर्मांतरण या फिर धर्मांतरण कराने का प्रयास नहीं किया था। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि यह शिकायतकर्ता को साबित नहीं करना है कि आरोपी ने धर्मांतरण का प्रयास गैरकानूनी तरीके से किया बल्कि यह आरोपी को साबित करना है कि उसके खिलाफ लगाया गया आरोप झूठा है। जबकि इस देश के सामान्य कानून के अंतर्गत दोषी तब तक पूर्ण रूप से दोषी नहीं माना जा सकता है जब तक कि शिकायतकर्ता अथवा राज्य के द्वारा यह साबित नहीं कर दिया जाता कि दोषी के खिलाफ लगाए गए आरोप सच्चे हैं और दोषी के खिलाफ सबूत कोर्ट में पेश किए जाते हैं। लेकिन गैर क़ानूनी धर्मांतरण निषेध कानून के अंतर्गत यह उल्टा है और यह दोषी को साबित करना है कि उसके खिलाफ लगाया गया दोष अथवा आरोप झूठा है। अब इस परिपेक्ष्य में यदि बात की जाए तो इसका असर संभावित तौर पर मसीह आस्था से सम्बंधित लोगों पर सीधे तौर पर पड़ सकता है क्योंकि सामान्य तौर पर मसीह आस्था से जुड़ा हुआ व्यक्ति बाइबिल के वचनों का अनुसरण करता है और दूसरों के लिए प्रार्थना करता है और दूसरे व्यक्ति के कल्याण के लिए कामना करता है। अब इस बात को यदि गौर से देखा जाए तो मसीह आस्था से सम्बंधित लोगों पर गैर क़ानूनी तरीके से धर्मांतरण का प्रयास करने का आरोप आसानी से लगाया जा सकता है क्योंकि बाइबिल अथवा मसीह आस्था सिर्फ अपने लिए ही नहीं बल्कि हर एक उस व्यक्ति के लिए प्रार्थना करने के विषय में सिखाती है जिसके लिए प्रार्थना करना आत्मिक रूप से जरुरी हो जाता है और जिसके बिना एक मसीह व्यक्ति का मसीह जीवन सफल नहीं माना जा सकता है। अब इस बात को भी समझना जरुरी है कि बाइबिल एक मसीह आस्था रखने वाले व्यक्ति को किसी बीमार के लिए प्रार्थना करने के लिए सिखाती है और किसी भी बीमार व्यक्ति के लिए प्रार्थना करना एक मसीह व्यक्ति अपना कर्तव्य समझता है और इसके अलावा बाइबिल एक व्यक्ति को दूसरों की मदद करने के विषय में भी सिखाती है और एक दूसरे से प्रेम के विषय में और यहाँ तक कि अपने शत्रुओं तक से प्रेम करने के विषय में सिखाती है और इसके चलते एक मसीह व्यक्ति अपने प्रेम को दूसरे लोगों के प्रति व्यक्त करता है। इसके चलते वह व्यक्तिगत तौर पर चाहता है कि जो प्रेम और दया रूपी व्यवहार वह दूसरों  के साथ कर रहा है ठीक उसी प्रकार का व्यवहार दूसरा व्यक्ति भी हर एक के साथ करें और वह अनायास ही दूसरे के द्वारा पूछे जाने पर अपनी आस्था के विषय में उस दूसरे व्यक्ति को बता देता है जो कि उसका मौलिक अधिकार है जो कि अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान के अंतर्गत उसका धार्मिक स्वतंत्रता  का अधिकार है। लेकिन कथित तौर पर दुर्भाग्यवश मसीह आस्था रखने वाले उस व्यक्ति के द्वारा दूसरों के प्रति अपने  प्रेम व सहयोग के व्यवहार को धर्मांतरण का रूप दे दिया जाता है और किसी भी किस्म का धर्मांतरण कराने का झूठा आरोप लगने पर उस मसीह व्यक्ति पर इस बात को साबित करने का बोझ आ जाता है कि वह यह साबित करे कि उसने सिर्फ अपनी आस्था के विषय में दूसरे व्यक्ति को बताया मात्र था और उसके खिलाफ लगाया गया आरोप झूठा है लेकिन कथित तौर पर कुछ कट्टरपंथियों के द्वारा धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाते हुए मसीह व्यक्ति के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया जाता है। 


    अंत में इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि केन्द्र सरकार के द्वारा इस पूरे देश में एक केंद्रीय गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून लागू किया जा सकता है और इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि संभावित व् कथित  तौर पर यदि ऐसा कोई कानून पूरे देश में लागू किया जाता है तो इसका सीधा असर मसीह आस्था से सम्बंधित लोगों पर अथवा मसीह समुदाय पर पड़ सकता है। 


नोट: इस लेख का उद्देश्य संभावित तौर पर लागू किए जाने वाले केन्द्रीय गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून के विषय में एक क़ानूनी विश्लेषण करना है। इस लेख का किसी भी धार्मिक संगठन के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है और ना ही इस लेख का उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना को आहत करना है। यह स्पष्ट रूप से तथ्यों व् स्त्रोतों के आधार पर क़ानूनी विश्लेषण के अलावा कुछ और नहीं है। 



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