Anti-Conversion Law and Evangelism In India भारत में (गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध) कानून व् मसीह सुसमाचार प्रचार:
By Nempal Singh (Advocate)
Date: 31/07/2022
भारत में (गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध) कानून व् मसीह सुसमाचार प्रचार:
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत के कई राज्यों में गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून को लागू किया गया है और हरियाणा उन सभी राज्यों में से एक राज्य है। यदि हम सम्पूर्ण भारत वर्ष की बात करें तो अभी तक सम्पूर्ण भारत वर्ष में इस तरह का कानून लागू नहीं किया गया है लेकिन मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए इस बात की आशंका जताई जा सकती है कि भविष्य में सम्पूर्ण भारत देश में गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून को लागू किया जा सकता है। अब इस सन्दर्भ में मुख्य रूप से इस बात की जानकारी होना आवश्यक है कि आखिरकार इस तरह के कानून को कुछ राज्यों में लागू क्यों किया गया है ? आज हम इस लेख के माध्यम से इस बात को जानने की कोशिश करेंगें कि आखिरकार इस कानून का मसीह आस्था व् विश्वास के परिपेक्ष्य में क्या आधार है ?
क्या धर्मांतरण एक अपराध है ?
यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है कि क्या कानून की नज़र में धर्मांतरण एक अपराध है? जैसा कि मैंने अपने अन्य लेखो के माध्यम से इस बात को स्पष्ट किया था कि हमारा देश एक गणराज्य है और एक गणराज्य वह होता है जिस देश का एक लिखित संविधान होता है। अब इस बात के बारे में भी हमें पता है कि भारत का एक विस्तृत लिखित संविधान है जो हमें कई प्रकार के अधिकारों व् कर्तव्यों के बारे में विस्तृत रूप में बताता है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान इस देश में हर प्रकार की क़ानूनी व्यवस्था का आधार है। अब इस विषय में चर्चा की जानी अत्यंत आवश्यक है कि क्या भारत में धर्मांतरण को एक अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है ? इस बड़े सवाल के जवाब में यह कहना क़ानूनी रूप में उचित होगा कि धर्मांतरण अपने आपमें कोई गैरकानूनी कृत्य अथवा कार्य नहीं है। अब क्योंकि हमें इस बात की जानकारी है कि संविधान में हमें अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 के अंतर्गत धार्मिक स्वंत्रता का अधिकार प्राप्त है जो कि हमारे मौलिक अधिकारों में से एक है तो अब इस बात को स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि स्वेच्छा से किया गया धर्मांतरण अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान (अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें) के अंतर्गत हर एक नागरिक का धार्मिक स्वंत्रता का अधिकार है और उससे यह अधिकार कोई नहीं छीन सकता। जैसा कि पिछले लेखों के माध्यम से इस बात को स्पष्ट रूप में बताया गया था कि अनुच्छेद 25 के अंतर्गत (अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें) अन्तःकरण की स्वत्रंता आती है जिसके अनुरूप एक व्यक्ति को अपनी स्वयं की इच्छा से अपनी आस्था का चयन करने का अधिकार है। इस आधरभूत नियम को यदि बारीकी से समझा व् देखा जाए तो यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि यदि एक व्यक्ति अपनी आस्था व् विश्वास के आधार पर अपना धर्मांतरण करना चाहता है तो वह क़ानूनी व् संवैधानिक रूप से अपना धर्मांतरण करने के लिए स्वतंत्र है। और तकनिकी रूप से जो धर्मांतरण रीती विधान की प्रक्रिया को पूरा करता है उसे भी किसी भी तरीके से गैरकानूनी व् असंवैधानक नहीं कहा जा सकता है। अब इस बात की गहराई में यदि जाया जाए तो कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र धार्मिक आस्था को कोई दूसरा व्यक्ति नियंत्रित नहीं कर सकता। किसी भी स्थिति में यह मुमकिन नहीं है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की धार्मिक आस्था व् विश्वास को बदल सके। यह उस व्यक्ति विशेष का अपना स्वयं का फैसला होता है कि वह किस किस्म की आस्था अथवा विश्वास का चयन करना चाहता है। उसके इस चयन को किसी भी रूप में गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता। अब यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि स्वेच्छा से किया गया धर्मांतरण किसी भी रीती से गैरकानूनी व् असंवैधानिक नहीं है।
मसीह सुसमाचार व् गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून :
अब हम यदि मसीह सुसमाचार की बात करें तो यह कहा जा सकता है कि सुसमाचार या मसीह प्रचार जो पवित्र बाइबिल से किया जाता है किसी भी रीती से गैरकानूनी या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। इस बात को दावे के साथ कहा जा सकता है कि मसीह सुसमाचार एक धर्म ग्रन्थ का हिस्सा है जो कि पवित्र बाइबिल के रूप में जाना जाता है और यह धर्म ग्रन्थ भारत देश में उतनी ही मान्यत रखता है जितना कि अन्य धर्म ग्रन्थ इस देश में मान्यता रखते हैं। तो यदि कोई मसीह अथवा गैर मसीह व्यक्ति पवित्र बाइबिल से प्रचार करता है तो वह किसी भी रीती से गैरकानूनी नहीं है। उदाहरण के तौर पर पवित्र बाइबिल में लिखा है कि "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।" (यूहन्ना 3 : 16) अब यदि इस वचन का प्रचार किसी भी व्यक्ति के द्वारा किया जाता है तो वह किसी भी तरीके से असंगत या गैर क़ानूनी नहीं माना जा सकता है क्योंकि यह वचन उस व्यक्ति विशेष का नहीं है जो उसे प्रचार करता है बल्कि एक धर्म ग्रन्थ का अंश है। तो वह व्यक्ति जो इस वचन का प्रचार करता है अथवा प्रचारक के रूप में देखा जा रहा है वह सिर्फ उस वचन का कानूनन रूप से पालन करने या उस वचन पर विश्वास करने वाले के रूप में देखा या स्वीकार किया जा सकता है। अब यदि कोई एक मसीह विश्वासी या प्रचारक किसी दूसरे व्यक्ति को बाइबिल में लिखित एक घटना के बारे में बताता है और वह यह बताता है कि यीशु मसीह ने तूफ़ान को आज्ञा दी कि वो रुक जाए और तभी तूफ़ान रुक गया तो इस प्रकार की बात बाइबिल में से बताना एक संवैधानिक प्रचार माना जाएगा क्योंकि बाइबिल इस घटना के विषय में बताती है और मसीह प्रचारक या मसीह व्यक्ति इस बात पर विश्वास रखते हैं और अनुच्छेद 25 भारतीय संविधान के अंतर्गत उस प्रचारक का यह संवैधानिक अधिकार है कि वह बाइबिल से इस बात का प्रचार व् प्रसार कर सकता है। अब संक्षेप में यह बात प्रमाणित तौर पर कही जा सकती है कि बाइबिल से किया गया मसीह सुसमाचार प्रचार किसी भी रीती से गैर क़ानूनी या असंवैधानिक नहीं माना जा सकता है और ना ही उस प्रचार को गैरकानूनी धर्मांतरण या धर्मांतरण के प्रयास के साथ जोड़ा जा सकता है। सुसमाचार प्रचार कानूनन रूप से धर्मांतरण या धर्मांतरण का प्रयास के रूप में किसी भी परिस्थिति में नहीं माना जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपनी आस्था और विश्वास के आधार पर स्वेच्छा से चर्च में जाता है और प्रार्थना सभा में शामिल होता है तो वह उसका चर्च में जाना व् उसका प्रार्थना सभा में शामिल होना किसी भी तरह से उसका अप्रत्यक्ष धर्मांतरण नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि किसी भी नागरिक का अपनी आस्था के आधार पर किसी भी धार्मिक स्थल में जाना उसकी उस धर्म में सिर्फ आस्था को प्रकट करता है और उसकी उस गतिविधि को क़ानूनी रूप में उसका धर्मांतरण बिलकुल भी नहीं माना जा सकता। हाँ यह उसकी स्वयं की इच्छा पर निर्भर करता है यदि वह उस धर्म को क़ानूनी रूप से अपनाना चाहता है जिसमें उसकी स्वयं की आस्था है और उस धर्म को अपनाने का उसका संवैधानिक अधिकार भी है जो कि उसका यह अधिकार किसी भी कानून के रूप में नहीं छिना जाना चाहिए।
अब यदि गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून की बात करें तो इस कानून का कोई भी सम्बन्ध सुसमाचार प्रचार से नहीं है बल्कि गैरकानूनी तरीके से किए गए धर्मांतरण से है। इस बात को समझना बहुत अधिक आवश्यक है कि सुसमाचार प्रचार बाइबिल के अंशों से किया गया प्रचार है जो कि भारत में अन्य धर्मग्रंथों की तरह ही एक मान्यता प्राप्त धर्म ग्रन्थ है। अब यदि मसीह प्रचारक के द्वारा बाइबिल में से जो कुछ भी प्रचार किया जाता है या फिर बाइबिल के किसी अंश अथवा किसी घटना या दृष्टान्त का जिक्र प्रचार के रूप में किया जाता है तो वह एक संवैधानिक व् क़ानूनी प्रचार ही माना जाएगा।
अब संक्षेप में यह स्पष्ट रूप में कहा जा सकता है कि पवित्र ग्रन्थ बाइबिल से सुसमाचार प्रचार करना किसी भी रीती से गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता है और गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध कानून का सुसमाचार प्रचार से सीधे तौर पर कोई सम्बन्ध नहीं है चाहे यह कानून आगामी समय में पुरे भारत वर्ष में भी क्यों ना लागू कर दिया जाए।
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