गृह कलीसिया के विषय में क़ानूनी पहलू : Indian Legal Aspects of House Prayer

By Nempal Singh (Advocate):

Date: 28/07/2022



गृह कलीसिया के विषय में क़ानूनी पहलू:


             गृह कलीसिया के विषय में यदि बात की जाए तो कहा जा सकता है कि पूरे विश्व में गृह कलीसिया एक ऐसी कलीसिया है जो कि व्यक्ति विशेष की अपनी निजी आस्था के आधार पर स्थापित होती है। अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि गृह कलसिया के सन्दर्भ में अलग अलग देशों में अलग अलग कानून हो सकते हैं या उन देशों में गृह कलीसिया को लेकर कोई संवैधानिक पहलू भी हो सकता है। लेकिन यदि भारत देश की बात की जाए तो निःसंदेह यह एक प्रश्न बनता है कि क्या भारत में भी गृह कलीसिया के सन्दर्भ में कोई विस्तृत या निश्चित कानून है? आखिर कार गृह कलीसिया का क़ानूनी आधार क्या है ?

             यदि हम गृह कलीसिया के सन्दर्भ में भारतीय कानून की बात करें तो यह समझ लेना आवश्यक है कि धर्म के सम्बन्ध में भारत देश में धार्मिक अधिकार भी है जो कि कुल छह मौलिक अधिकारों में से एक है। अब जब भारत में एक लिखित संविधान है और हमे इस बात का पता है कि संविधान और उसमें की गयी व्याख्या सर्वोपरि है तो अब संवैधानिक नजरिए से ही गृह कलसिया के क़ानूनी पहलू को जान लिया जाए तो यह उचित होगा। आइये इस लेख के माध्यम से इस बात को आज समझने की कोशिश करते हैं कि गृह कलसिया का क़ानूनी आधार क्या है ?

             सर्वप्रथम इस बात को समझ लेना अत्यंत आवश्यक है कि आस्था के चयन का अधिकार व् उसका आधार हमारा वह संवैधानिक एवं मौलिक अधिकार ही है जो हमें हमारा लिखित संविधान प्रदान करता है। मौलिक अधिकार वह होता है जो एक नागरिक के जन्म के समय से ही उसे प्राप्त हो जाता है। इस बात को स्पष्ट रूप से समझ लेना अत्यंत आवश्यक है कि सामान्य रूप में मौलिक अधिकार को छीनने का अधिकार किसी भी व्यक्ति या संस्था के पास नहीं है। यदि मौलिक अधिकार के इस्तेमाल के समय किसी किस्म का गैर क़ानूनी कृत्य घटित होता है तो वह मामला एक अपराध के रूप में देखा जा सकता है। अब इस बात को भी समझ लेना आवश्यक है कि जब एक नागरिक के द्वारा अपने मौलिक अधिकार का उपयोग किया जा रहा है तो उसे इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि कहीं अपने मौलिक अधिकार के इस्तेमाल के समय में वह कोई अपराध तो नहीं कर रहा। अब यह सवाल उठता है कि इस बात को कैसे सुनिश्चित किया जाए कि मौलिक अधिकार के इस्तेमाल का दायरा एक क़ानूनी दायरा है या क़ानूनी दायरे से बाहर है। इस विषय में यह भी बता देना आवश्यक है कि इस देश में यह क़ानूनी मान्यता है कि यदि संवैधानिक तौर पर किसी कानून का निर्माण किया गया है तो यह मान लिया जाता है कि इस देश के नागरिकों को उस कानून की भरपूर जानकारी है। अर्थात यदि कोई व्यक्ति कोई अपराध करता है तो वह इस बात को अपने पक्ष में नहीं कह सकता है कि उसे कानून के विषय में ज्ञान नहीं था या वह जानता नहीं था कि जो उसने किया है या जो वो करने जा रहा है या जो वह करने का प्रयास कर रहा है वह एक अपराध की श्रेणी में आता है। भारत में क़ानूनी मान्यता के अंतर्गत यह एक सिद्धांत है कि तथ्यों को तो नज़र अंदाज़ किया जा सकता है लेकिन कानून को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है। अब कुल मिला कर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह भारत में क़ानूनी तौर पर माना जाता है कि हर एक नागरिक को कानून का बोध अथवा जानकारी है। अब इस बात को भी जान लेते हैं कि गृह कलसिया का भारत में क़ानूनी पहलू क्या हो सकता है ? 

           अब तक हम इस बात को जान चुके हैं कि संवैधानिक रूप में धार्मिक अधिकार प्रत्येक नागरिक का एक मौलिक अधिकार है। जैसा कि मेरे द्वारा अन्य लेखो में इस बात को स्पष्ट रूप में बताया गया था कि धार्मिक अधिकार मुख्य रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत आता है। जिसमें अनुच्छेद 25 मुख्य रूप से माना जाता है या यूँ कहें कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक आस्था के विषय में विस्तृत जानकारी मिल जाती है। गृह कलसिया के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि वह उन लोगों का समूह है जो एक निश्चित व् सांझी आस्था के आधार पर मसीह यीशु की एक निश्चित स्थान में अर्थात घर में या फिर किराये के मकान में अराधना, प्रार्थना या उपासना करते हैं। अब इस बात को संविधान के अनुच्छेद 25 के नज़रिये से देखें तो अनुच्छेद 25 कहता है कि प्रत्येक नागरिक को अपनी आस्था का चुनाव करने की स्वंत्रता है। वह किसी भी धर्म का अनुपालन कर सकता है और उसके अनुसार आचरण कर सकता है। साथ ही साथ वह उस धर्म का प्रचार व् प्रसार भी कर सकता है। लेकिन जैसा कि इससे पहले के एक अन्य लेख में बताया गया था कि किसी भी व्यक्ति को अपने धार्मिक अधिकार का उपयोग करते समय लोक व्यवस्था ,नैतिकता व् लोक स्वास्थ्य का ख्याल रखना होगा तभी वह व्यक्ति अपने धार्मिक अधिकार का प्रयोग कर सकेगा। (अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें)

            अब इसी संवैधानिक पहलू की यदि बात करें तो स्पष्ट हो जाता है कि गृह कलसिया में शामिल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति की वह उसकी अपनी निजी धार्मिक आस्था अथवा विश्वास है जो उसे उस जगह अथवा स्थान पर आने, रुके रहने व् मसीह यीशु की अराधना, प्रार्थना व् उपासना करने के लिए प्रेरित करता है। यह सर्वविदित है कि किसी और की सोच या मानसिकता के आधार पर किसी दूसरे व्यक्ति की धार्मिक आस्था को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति की आस्था संविधान के अनुच्छेद 25 के मद्देनर किसी पत्थर को पूजने की है और यदि उस पत्थर में उस व्यक्ति को ईश्वर का स्वरुप नज़र आता है तो वह अनुच्छेद 25 के अंतर्गत उस पत्थर की उपासना व् अराधना कर सकता है। यह उसका मौलिक अधिकार है जो उससे छिना नहीं जा सकता। अब यह बात बिलकुल स्पष्ट हो जाती है कि गृह कलीसिया संवैधानिक व् क़ानूनी रूप में एक वैध कलीसिया है लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ कट्टरपंथी और संकीर्ण मानसिकता के लोगों के द्वारा काफी समय से मसीह प्रार्थना सभाओं का विरोध किया जाता रहा है जो कि गैरकानूनी है।  (इस टीवी रिपोर्ट को देखें )


गृह कलीसिया व् अनुमति : 


              

          गृह कलसिया के क़ानूनी पहलू को समझ जाने के बाद अब जो दूसरा बड़ा सवाल उठता है वह यह है कि क्या गृह कलीसिया को चलाने या उसमें शामिल होने के लिए किसी किस्म की पुलिस से या फिर प्रशासन से अनुमति लेने की आवश्यकता है ? इसके जवाब में यह स्पष्ट रूप में कहा जा सकता है कि गृह कलसिया एक संवैधानिक व् क़ानूनी रूप से वैध कलसिया है और उसमें शामिल होना या उस समूह की किसी एक व्यक्ति के द्वारा अगवाई करना भी एक संवैधानिक अधिकार है तो उस कलसिया के संचालन के लिए पुलिस से या प्रशासन से अनुमति लेने का सवाल ही नहीं उठता। हाँ इस बात का ख्याल रखा जाना जरुरी है कि जिस क्षेत्र में वह कलसिया संचालित की जा रही है वहां के लिए कोई प्रशासनिक आदेश तो नहीं है जैसे कि कई बार किसी एक क्षेत्र में कुछ समय के लिए धारा 144 को लागू कर दिया जाता है या फिर एक जगह इक्कठा ना होने को लेकर कोरोना जैसी महामारी के चलते कोई गाइड लाइन अथवा निर्देश प्रशासन के द्वारा जारी किये जाते हैं। मोटे तौर पर गृह कलसिया लोगों का एक ऐसा समूह है जहाँ लोग इकठ्ठा होकर प्रभु यीशु मसीह की अराधना, प्रार्थना व् उपासना करते हैं और उन्ही लोगों में से एक व्यक्ति उस कलसिया की अगुवाई  करता है जिसे हम एक कलीसिया के अगुवे के रूप में मान सकते हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसा कि विभिन्न धर्मों के लोग अपनी अपनी आस्था व् विश्वास अथवा मान्यता और रीती के अनुसार अराधना, उपासना , प्रार्थना और इबादत अपने अपने घरों में करते हैं। यह ठीक उस तरह का भी कहा जा सकता है जब लोग अपने अपने घरों में अपनी पसंद के अनुसार भोजन बनाते है और खाते हैं। अब यह स्पष्ट हो जाता है कि गृह कलीसिया के लिए किसी भी किस्म से पुलिस या प्रशासन से अनुमति की कोई आवश्यकता नहीं है। 


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