क्या मसीह सत्संग या प्रार्थना सभा के लिए अनुमति की आवश्यक्ता है? Is it necessary to get permission for Christian Meeting or Prayers?
By Nempal Singh (Advocate)
Date: 04/08/2022
क्या मसीह सत्संग या प्रार्थना सभा के लिए अनुमति की आवश्यक्ता है?
आज एक बड़ा सवाल हमारे सामने है कि क्या एक मसीह प्रार्थना सभा या सत्संग के लिए किसी विशेष प्रकार की अनुमति की जरुरत है ? जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत देश एक गणराज्य है और यह देश पूरे विश्व में अपनी एकता और अखंडता के लिए जाना जाता है और इसमें कोई दोराए नहीं है कि भारत की इस विभिन्नता में एकता वाली निति ही है जो इस देश को सबसे अलग बनाती है। अब भारत एक गणराज्य है और हम सभी जानते हैं कि भारत देश का एक लिखित संविधान भी है और वह सर्वोपरि है जैसा कि मैंने अपने पहले के लेखों में भी विस्तृत व्याख्यान किया था। अब सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि भारत एक बड़ा लोकतान्त्रिक देश होने के साथ साथ एक ऐसा देश हैं जहाँ हर धर्म और वर्ग का व्यक्ति वास करता है। यहाँ रूपरेखा के रूप में इस बात को बता देने का उद्देश्य सिर्फ इस विषय को ठीक ढंग से समझ पाना है। अब क्रमशः हम इस बात को समझेंगे कि मसीह सत्संग अथवा प्रार्थना सभा के लिए किसी किस्म की अनुमति प्रशासन से लेने की आवश्यकता है या नहीं।
अनुच्छेद 15 के आधार पर :
जैसा कि हम जानते हैं कि संविधान की नज़र में सभी नागरिक एक समान हैं और अनुच्छेद 15 भारतीय संविधान में यह लिखा हुआ है कि नागरिकों में किसी भी तरह से रंग, जाति, धर्म, पंथ, भाषा, जन्म स्थान व् लिंग के आधार पर किसी भी किस्म का भेद भाव नहीं किया जा सकता है। इस विषय में यदि गौर किया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अनुच्छेद 15 हमें समानता का अधिकार प्रदान करता है। अब जब यह स्पष्ट रूप में हमें पता चल चुका है कि धर्म के आधार पर किसी भी किस्म से संवैधानिक रूप में भेद भाव नहीं किया जा सकता तो अब इस बात को समझना होगा कि मसीह प्रार्थना सभा या सत्संग का संवैधानिक नजरिए से क्या आधार है ? क्योंकि इस देश में संविधानक रूप से भेद भाव की निति को लागू नहीं किया जा सकता तो यह स्पष्ट हो जाता है मसीह सत्संग अथवा सभा के सन्दर्भ में भी किसी किस्म से भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
अब जो हमारा विषय है कि क्या मसीह सत्संग अथवा प्रार्थना सभा के लिए किसी किस्म की प्रशासन से अनुमति लेने की आवश्यकता है ? तो विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट रूप में कहा जा सकता है कि जिस प्रकार सभी धर्मों के लोग अपने अपने स्तर पर अपनी अपनी धर्मिक आस्था के आधार पर अपना अपना धर्मिक कार्यक्रम आयोजित करते है जो कि उन लोगों का अनुच्छेद 25 (अनुच्छेद 25 के विषय में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें) भारतीय संविधान के अंतर्गत संवैधानिक अधिकार भी है तो ठीक उसी तरह कानूनन व् संवैधानिक रूप से मसीह सत्संग अथवा प्रार्थना सभा का आयोजन भी क़ानूनी व् संवैधानिक रूप में किया जा सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या मसीह सत्संग अथवा सभा के लिए किसी विशेष किस्म की अनुमति की आवश्यकता है ? इस सवाल के जवाब में यह कहा जा सकता है कि यह पूरा विश्व जानता है कि प्रत्येक रविवार को पुरे विश्व में मसीह समुदाय के द्वारा प्रार्थना सभा अथवा सत्संग का आयोजन किया जाता है जो कि सर्वविदित है कि भारत वर्ष में भी मसीह समुदाय के लोग अथवा मसीह यीशु में आस्था या विश्वास रखने वाले लोग इस दिन सम्मलित होकर प्रार्थना, आराधना करते हैं। अब क्यों कि यह मसीह समुदाय के लोगों के द्वारा जारी रखी जा रही एक धार्मिक रीती अथवा नियम भी है और इस देश में सभी इस बारे में जानकारी रखते हैं कि प्रत्येक रविवार को मसीह समुदाय द्वारा प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया जाता है और यह मसीह समाज के लोगों का संवैधानिक अधिकार भी है तो अब रविवार की प्रार्थना सभा अथवा सत्संग के लिए किसी भी प्रकार की अनुमति लेने का कोई औचित्य ही नहीं बनता। सरल शब्दों में कहा जाए तो यह स्पष्ट व् क़ानूनी तौर पर व् संवैधानिक रूप में कहा जा सकता है कि रविवार को की जाने वाली किसी भी किस्म की मसीह प्रार्थना अथवा सत्संग के लिए किसी भी प्रकार की किसी से भी कोई अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
जमीनी हकीकत प्रार्थना सभा के विषय में :
अब यह काफी बार देखा गया है कि मसीह समुदाय की प्रार्थना सभाओं को झूठा धर्मांतरण का आरोप लगा कर रुकवा दिया जाता है और पुलिस द्वारा शांति व्यवस्था की दोहाई दी जाती है और इसी कारण से मसीह प्रार्थना सभा को बंद करा दिया जाता है, यहाँ तक कि अधिकतर मामलों में मसीह प्रार्थना आयोजकों अथवा पासबानो के खिलाफ कट्टरपंथी लोगों के दबाव में आ कर पुलिस द्वारा झूठा मुकदमा भी दर्ज कर लिया जाता है और अमूमन पुलिस द्वारा मसीह समुदाय के प्रार्थना कर रहे लोगो को प्रशासन से इस प्रार्थना सभा के आयोजन के संदर्भ में अनुमति लेकर आने को कहा जाता है और इस प्रकार की परिस्थिति में मसीह समुदाय के लोग प्रशासन के पास अपने इस धार्मिक अधिकार को लेकर जाते है और वहां से उन्हें कोई उपाय नहीं मिलता और उन्हें प्रार्थना सभा को आयोजित करने के लिए पूर्ण रूप से पुलिस के द्वारा मना कर दिया जाता है। यह एक विडम्बना और दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि मसीह समुदाय व् उनके धार्मिक अधिकार को बाधित करने की कोशिश हमेशा से की जा रही है जो कि भारत वर्ष के विभिन्न राज्यों में आज भी जारी है। (इस वीडियो रिपोर्ट को देखें) जबकि क़ानूनी व् संवैधानिक तौर पर देखा जाए तो यह मसीह समुदाय का मौलिक अधिकार है कि वह अपनी आस्था के आधार पर प्रार्थना व् आराधना करें और इस अधिकार को बाधित करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। अब यदि आरोपों की बात की जाए तो इसका एक मुख्य कारण यह भी माना जा सकता है कि कुछ कट्टरपंथी लोगों को मसीह आस्था व् विश्वास से आपत्ति है (इस वीडियो रिपोर्ट को देखें)और वो लोग झूठे आरोप लगाने को उतारू हो जाते हैं और उनके द्वारा जब इस बात का पता लगाया जाता है कि प्रार्थना सभा में आने वाले लोग अलग अलग धर्मों व् जाति से सम्बन्ध रखते हैं तो उनके पास धर्मांतरण का झूठा आरोप लगाने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचता और फिर उन कट्टरपंथियों के द्वारा हंगामा किया जाता है और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश की जाती है (इस वीडियो रिपोर्ट को देखें) और उल्टा मसीह समुदाय के लोगों पर धर्मांतरण का आरोप लगा दिया जाता है और पुलिस द्वारा झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया जाता है। अब यदि हम इस परिस्थिति का विश्लेषण करें तो सर्वप्रथम यह हम सभी जानते हैं कि अनुच्छेद 25 के अंतर्गत हर एक नागरिक को यह अधिकार है कि वह अपनी आस्था अथवा विश्वास का चयन कर सकता है और इसके लिए वह बाध्य नहीं है कि वह किसी भी धार्मिक स्थल पर जाने से पहले किसी व्यक्ति विशेष या प्रशासन की अनुमति ले और यदि यह अनुमति लेना उनके लिए अनिवार्य बना दिया जाता है तो फिर वह स्थिति उनके धार्मिक अधिकार का सीधे तौर पर हनन ही माना जा सकता है। इसके अलावा किसी इस प्रकार के विशेष प्रार्थना सभा के आयोजन के लिए जो कि किसी सार्वजनिक स्थल पर या फिर किसी किराए पर एक या दो दिन के लिए गए किसी हाल में होनी है तो उस प्रकार की सभा के लिए और मौजूदा स्थिति को देखते हुए प्रशासन से अनुमति ले ली जाए तो यह सुरक्षा की दृष्टि से एक सही कदम होगा। हालांकि संवैधानिक दृष्टि से देखा जाए तो जिस प्रकार विभिन्न अन्य धर्म के लोगों को पंडाल लगा कर या फिर किसी और तरीके से अपनी अपनी आस्था के अनुरूप प्रार्थना, आराधना या इबादत करने के लिए अनुमति के सन्दर्भ में कुछ खास प्रयास करने की जरुरत नहीं पड़ती है तो ठीक उसी तरह मसीह समुदाय को भी अनुमति के दृष्टिकोण से कुछ खास प्रयास करने की जरुरत नहीं पड़नी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश देखा यह गया है कि अनुमति लेने के लिए भी मसीह समुदाय को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और अंततः कई बार अनुमति के ना मिलने की वजह से मायूसी का सामना करना पड़ता है। लेकिन यह सामान्य कहा जाने वाला दृष्टिकोण कब बदल सकेगा इसकी केवल अनिश्चित अपेक्षा ही की जा सकती है। लेकिन अंत में यह कहना उचित होगा की यदि किसी सार्वजनिक स्थल पर मसीह सभा होनी है या फिर किसी ऐसे स्थल पर मसीह सभा या सत्संग होना है जो कि एक या दो दिनों के लिए किराए पर लिया गया है तो मौजूदा स्थिति को देखते हुए सुरक्षा की दृष्टि से अनुमति व् साथ ही साथ सुरक्षा ले ली जाए तो उचित रहेगा।
कुछ महत्वपूर्ण उपाए :
अब इस बात पर गौर करना जरुरी है कि यदि इस प्रकार की विरोधास्पद स्थिति पैदा हो जाए तो किया क्या जाना चाहिए ? इस सम्बन्ध में मेरी अपनी निजी राय है कि इस प्रकार की परिस्थिति में एक लिखित दरखास्त प्रार्थना सभा के आयोजकों की तरफ से उन विरोधी लोगों के खिलाफ पेश की जानी चाहिए और उसमें अपने धार्मिक अधिकारों का हवाला दिया जाना चाहिए और साथ ही साथ हर एक कलीसिया में सी० सी० टी० वी० कैमरा लगवाया जाना चाहिए और यदि सी० सी० टी० वी० कैमरा लगवाना संभव नहीं है तो कम से कम हर एक कलीसिया में एक मीडिया टीम का होना आवश्यक है और मीडिया टीम के लोगों का विश्वास पात्र होना आवश्यक है और साथ ही साथ जब पूरी प्रार्थना सभा को रिकॉर्ड किया जाए तो उस दिन के अखबार की पहले पेज की वीडियो बनाते हुए रिकॉर्ड किया जाना चाहिए जिसमें कि दिनांक और दिन और अखबार का नाम पूरी तरह से दिखाई देना चाहिए जिससे की आवश्यकता पड़ने पर उस दिनांक और दिन को साबित किया जा सके कि वह वीडियो उसी दिन व् दिनांक की है। इसके साथ ही साथ हर बार जब भी प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है तो उस समय पर एक सहमति पत्र सभी से भरवाना चाहिए जो कि इस लेख के साथ नीचे उसकी कॉपी संलग्न की गयी है। खास तौर पर सहमति पत्र हर एक व्यक्ति जो भी प्रार्थना सभा में आता है उससे लिया जाना चाहिए और उस सहमति पत्र को सारी कलीसिया के सामने पढ़ कर सुनाया जाना चाहिए और इस बात की घोषणा की जानी चाहिए कि इस सहमति पत्र को हर एक व्यक्ति के द्वारा भर कर दिया जाना आवश्यक है। यह सहमति पत्र एक साधारण पेपर पर प्रिंट करवा कर उसकी अनेकों कॉपी रख लेनी चाहिए और जब भी कोई नया व्यक्ति प्रार्थना सभा में आता है उससे वह सहमति पत्र भरवा लिया जाना चाहिए जिसमें कि उसके अपने हस्ताक्षर होना जरुरी है और यदि वह व्यक्ति पढ़ा-लिखा नहीं है तो अंगूठा लगवाना जरुरी है। इसके अलावा जब कभी भी कोई व्यक्ति प्रार्थना के सम्बन्ध में पासबान को बुलाता है तो उस व्यक्ति से सहमति पत्र की तरह ही एक आमंत्रण पत्र लिया जाना चाहिए जिसमें वह इस बात के लिए चर्च को अथवा पासबान को प्रार्थना विषय और प्रार्थना आयोजन के विषय में आवेदन करे।
जैसा कि मैंने अपने पिछले लेख में बताया था कि यदि मसीह अगुवे या विश्वासी के द्वारा पवित्र धर्म ग्रन्थ बाइबिल से कुछ भी सुसमाचार के रूप में बताया जा रहा है तो वह कानूनन रूप से और साथ ही साथ संवैधानिक रूप से वैध है और किसी भी तरह से उस सुसमाचार पर प्रश्न नहीं किया जा सकता क्योंकि वह सुसमाचार भारत में एक समुदाय के मान्यता प्राप्त धर्म ग्रन्थ से सुनाया जा रहा है। जिस प्रकार अन्य धर्म ग्रन्थ अपने अपने समुदाय के लिए मान्यता रखते हैं ठीक उसी तरह पवित्र बाइबिल भी मसीह समुदाय के लिए मायने रखती है और भारत वर्ष में रहने वाला नागरिक अपनी आस्था व् विश्वास का प्रचार व् प्रसार करने के लिए स्वतंत्र है (अधिक गहन जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें) तो उपरोक्त सारे विश्लेषण को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मसीह प्रार्थना सभा अथवा सत्संग के लिए जो हर रविवार को पुरे भारत वर्ष में की जाती है उसके लिए किसी भी किस्म की प्रशासन से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। इससे अलग यदि किसी खुले स्थान पर या फिर सार्वजनिक स्थल पर और यहाँ तक कि किसी किराये के हाल में एक या दो दिनों के लिए यदि प्रार्थना सभा या सत्संग किया जाना है तो सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन से अनुमति व् सुरक्षा ले ली जानी चाहिए जिससे किसी भी प्रकार के व्यवधान का या किसी अप्रिय घटना का सामना ना करना पड़े।
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